सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ “विश्व विवशता दिवस…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

(कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा अङ्ग्रेज़ी भावानुवाद पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें  👉 Compulsion… .)

[1] 

मछली

अपने आँसू

दिखा नहीं सकती

समंदर

देख नहीं सकता

यह विवशता है।

 

[2] 

बादल हों न हों

पानी

बरसे न बरसे

कुछ मेंढ़कों को

डराँव डराँव

करना ही पड़ता है

यह विवशता है।

 

[3] 

पानी और तंत्र की

सांठगांठ है

कुछ लोग जंगल की आग

शब्दों से

बुझाने में लगे हैं

यह भी तो विवशता है।

 

[4] 

बिल्ली के गले में

घंटी बाँधना तो

चाहती हैं

चूहे 

पर

ख्वाब में

यह भी विवशता है।

 

[5] 

ऐसे हैं वैसे हैं

काँटे

खुद के जैसे हैं

ढोंगियों के पाँव तले

फूलों की तरह

बिछाए नहीं जाते

दोनों की विवशता है।।

 

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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