सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ सांझ ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सांझ

वापसी का उत्सव है !!

कलरव है

सौ सौ चिड़ियों का,

जो गगन नापकर लौट आती हैं

दरख्तों पर

अपने अपने नीड़  में

चूजों के पास !!

 

    रव है

उन कोमल किरणों का

जो पौ फटने से लेकर

दिन के

अंतिम क्षण तक

उड़ेलती हैं उजाले

अनथक !!

 

     अनुभव है

उनका जो एक पूरी

उम्र जैसा दिन जीकर

निविड़ कोलाहल से

थककर चूर

चले आते हैं

खुद तक !!!

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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