सुरेश पटवा
((श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी चारों पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आजकल वे हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना स्वीकार किया है जिनमें कई कलाकारों से हमारी एवं नई पीढ़ी अनभिज्ञ हैं । उनमें कई कलाकार तो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है आलेख हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णयुग के कलाकार : शख़्सियत: गुरुदत्त…4।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 19 ☆
☆ शख़्सियत: गुरुदत्त…4 ☆
गुरुदत्त (वास्तविक नाम: वसन्त कुमार शिवशंकर पादुकोणे,
जन्म: 9 जुलाई, 1925 बैंगलौर
निधन: 10 अक्टूबर, 1964 बम्बई
भाग्य भी गुरुदत्त की 1954 की ब्लॉकबस्टर “आर पार” पर मुस्कुराया। इसके बाद 1955 की हिट, मिस्टर एंड मिसेज ’55, उसके बाद सी आई डी, और 1957 में “प्यासा” – दुनिया से खारिज एक कवि की कहानी, जो अपनी मृत्यु के बाद ही सफलता प्राप्त करती है। दत्त ने इन पांच फिल्मों में से तीन में मुख्य भूमिका निभाई।
देवानंद से मित्रवत् करार के मुताबिक़ गुरुदत्त ने देवानंद को हीरो लेकर सी आई डी बनाई जो बहुत कामयाब फ़िल्म सिद्ध हुई। C.I.D. राज खोसला द्वारा निर्देशित और गुरुदत्त द्वारा निर्मित 1956 की अपराध थ्रिलर है। इसमें देवानंद, शकीला, जॉनी वॉकर, के एन सिंह और वहीदा रहमान जैसे सितारे हैं। फिल्म में देव आनंद एक पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका निभा रहे हैं जो एक हत्या के मामले की जांच कर रहा है। संगीत ओ पी नैय्यर का है और गीत मजरूह सुल्तानपुरी और जाँ निसार अख्तर के हैं। यह वहीदा रहमान की पहली फिल्म थी, और भविष्य के निर्देशक प्रमोद चक्रवर्ती और भप्पी सोनी सहायक निर्देशक के रूप में काम करते थे। गुरुदत्त ने वहीदा रहमान को एक तेलुगु फिल्म में देखा था और प्यासा में लेने के पहले सी.आई.डी. में उसे प्यासा के लिए तैयार करने के लिए क़ाम करवाया।
उनकी 1959 में “कागज़ के फूल” एक गहन निराशा का प्रतिबिम्ब थी। उन्होंने इस फिल्म में बहुत प्यार, पैसा और ऊर्जा का निवेश किया था, जो एक प्रसिद्ध निर्देशक की एक आत्म-कहानी थी, जो एक अभिनेत्री के साथ प्यार में पड़ जाता है। कागज़ के फूल बॉक्स ऑफिस पर असफल रही। कागज़ के फूल 1959 में बनी गुरुदत्त द्वारा निर्मित और निर्देशित हिंदी फ़िल्म है, जिसने फ़िल्म में मुख्य भूमिका भी निभाई। यह फिल्म सिनेमास्कोप में पहली भारतीय फिल्म मानी गई और निर्देशक के रूप में दत्त की अंतिम फिल्म थी। 1980 के दशक में इसे विश्व सिनेमा की क्लासिक माना जाने लगा। फिल्म का संगीत एस डी बर्मन द्वारा रचा गया था, गीत कैफ़ी आज़मी और शैलेन्द्र द्वारा लिखे गए थे, कई लोग इस फिल्म को अपने समय से बहुत आगे मानते हैं।
फिल्म का संगीत एस डी बर्मन ने तैयार किया था। एस डी बर्मन ने उन्हें “कागज़ के फूल” न बनाने की चेतावनी दी थी, जो उनके खुद के जीवन से मिलता जुलता था। जब गुरुदत्त ने फिल्म बनाने पर जोर दिया, एस.डी. बर्मन ने कहा कि गुरु दत्त के साथ उनकी आखिरी फिल्म होगी।
फिल्मफेयर बेस्ट सिनेमैटोग्राफर अवार्ड – वी.के. मूर्ति
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन पुरस्कार – एम आर अचरेकर
“चौदहवीं का चाँद” मोहम्मद सादिक द्वारा निर्देशित अत्यंत सफल फिल्म है। यह फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर 1960 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में से एक थी। गुरुदत्त, रहमान और वहीदा रहमान के बीच एक प्रेम त्रिकोण पर केंद्रित इस फिल्म में रवि का संगीत शामिल हैं। फरीदा जलाल ने इस फिल्म में पहली बार अतिथि भूमिका निभाई। कागज़ के फूल के विनाशकारी बॉक्स ऑफिस प्रदर्शन के बाद गुरुदत्त के लिए यह एक व्यावसायिक रूप से सफल फिल्म थी, जिसने गुरुदत्त के प्रोडक्शन स्टूडियो को खंडहरों में तब्दील होने से बचा लिया।
© श्री सुरेश पटवा
भोपाल, मध्य प्रदेश