सुश्री इन्दिरा किसलय
☆ व्यंग्य 🍅 “ड्रैक्यूला टमाटर…” 🍅 सुश्री इन्दिरा किसलय ☆
बेटी ने पूछा–लाल मणि कहाँ छुपा रखे हैं माॅम ?
मैंने भी नहले पे दहला मारा–“तिजोरी में”
–हां अब तिजोरी के अलावा रखोगी भी कहाँ !
कभी कभी परिहास से अनछुआ सच झाँकने लगता है। लगता है ईश्वर ने टमाटर की तकदीर बड़ी फुर्सत में लिखी है। भूतकाल में प्याज ने मयूरासन डुला दिया था। पता नहीं टमाटर के मन में क्या खदबदा रहा है।
अखबार छाप रहे हैं-लाल सिलेंडर,लाल डायरी,लाल टमाटर और झंडी भी लाल लाल ! बात जंतर मंतर जैसी लगी।
ऐसे तो आदमी का लहू भी लाल है। पर वह तो बहुत सस्ता है। कोई कहीं भी बहा देता है।
लाल मणि कैसे और क्योंकर आसमान छूने लगे।
टमाटरों के सरदार ने अपना नाम घमंडीलाल रख लिया है। सुनते हैं।उसे z+ सुरक्षा मिली हुई है। है किसी की मजाल जो उसके आसपास भी फटके। सुरक्षा के सात घेरे तोड़ने पड़ेंगे। हवा तक बगैर अनुमति के छू नहीं पाती।
पिछली बार इन्दौर में बंदूकों के साये तले महफूज रहे बेचारे। जिनके घर टनों टमाटर उन्हें रतजगा करना ही होगा। टमाटरपतियों का बी पी बढ़ रहा है। स्वयं टमाटर डरे हुये हैं पर उन्हें पता है–डर के आगे जीत है। खबरपतियों को खबर ही नहीं।
सबसे ज्यादा बेचैन हैं किचन क्वीन यानी महिलाएं। वे धन्यताभाव से भर जायें अगर उनके सिरीमान(श्रीमान) कर्णफूल , बिन्दी, कंगन, बाजूबंद करधनी, पाजेब, मुद्रिका, चन्द्रहार, टमाटराकृति ले आयें। पानी की प्यास कोल्ड्रिंक से बुझानी पड़ती है कभी कभी। टमाटर का रुतबा है ही ऐसा।
लाल डायरी से ज्यादा रहस्यमय है टमाटरों की दुनिया।
टमाटरों के बगैर सब्जियां स्वाद छुपाने लगी हैं। मैंने उन्हें मना लिया है। वे टमाटर की फोटू देखकर मान जाती हैं। काम चल रहा है।
चुड़ैल सब्जियां बाजार में आम आदमी को देखकर खींसे निपोरती हैं।टमाटर की फोटू धड़ल्ले से बिक रही है।
अकड़ू टमाटर का भी अपना इतिहास है। है कोई माई का लाल जो उसका इतिहास बदलने की जुर्रत करे। वामपंथियों पर तोहमत लगा दे कि तुम्हीं ने उसे स्पेनिश कहा।भारत में तो आदि मानव टमाटरों पर जिन्दा रहता था। इतिहास ,किसका भला नहीं होता। हर वर्तमान का इतिहास होता है।
सच तो ये है कि टमाटर स्पेन से चला।चलते चलते यूरोप पहुँचा और फिर सारी दुनिया में छा गया। उसने ठान लिया था कि वो 192 देश घूमकर रहेगा। सो घूमा।स्पेनिश लोगों ने कह तो दिया लव एप्पल पर ला टोमेटिना उत्सव पर खूब लातें घूसे मारे। जमकर कुटाई की।कचूमर निकाल दिया।
इस दुनिया में कुछ भी होता है। प्यादे से फर्जी होने में टाइम कितना लगता है। कल तक जो छुट्टा यानी चिल्लर था आज उसे डाॅलर बना दिया।विकास के मानी क्या खाक समझेंगे जो पेट्रोल, बिजली, सब्जी ,भाजी, और जीरे, के मन की बात नहीं समझते।उन्हें तो चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी का आकलन है कि नाम में बहुत कुछ नहीं, सब कुछ रखा है।सब्जियों के नाम धाकड़ हों तो जज़्बात पैदा होते हैं।आजमाने में क्या हर्ज है।नाम बदलना नहीं है ,सिर्फ नाम के आगे विशेषण लगाने हैं –जैसे “घमंडी समोसा” “सिजलिंग बीन्स” डायनामाइट चिली”(भूत जोलोकिया)—-इसी क्रम में “ड्रैक्यूला टमाटर” कैसा रहेगा ?
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© सुश्री इंदिरा किसलय
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈