श्री जगत सिंह बिष्ट

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

(ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है। श्री जगत सिंह बिष्ट जी (Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker) के शब्दों में  “वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।”

दस्तावेज़ में ऐसी ऐतिहासिक दास्तानों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। इस शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है श्री जगत सिंह बिष्ट जी का एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ मूल्यवान धरोहर: परसाई और पुणतांबेकर की हस्तलिपि।) 

☆  दस्तावेज़ # 13 – मूल्यवान धरोहर: परसाई और पुणतांबेकर की हस्तलिपि ☆ श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

महान रचनाकार केवल उत्कृष्ट साहित्य ही नहीं रचते बल्कि नव-अंकुरित रचनाकारों को भी प्रोत्साहित करते हैं।

लगभग नब्बे के दशक की बात है। तब मैं जबलपुर में कार्यरत था। बैंक का काम हो जाने के बाद, मैं, प्रति मंगलवार, शाम को श्रद्धेय हरिशंकर परसाई के नेपियर टाऊन स्थित आवास में नियमपूर्वक जाया करता था। वे एक तख़त पर, पीछे पीठ टिकाए, अधलेटे, कुछ पढ़ते हुए मिलते। अत्यंत सौम्य, शांत और गंभीर।

मैंने तब व्यंग्य लिखना शुरू ही किया था। वो मेरी बात को ध्यानपूर्वक सुनते और मार्गदर्शन करते। उन्होंने मुझसे कहा कि अच्छा गद्य लिखना है तो रवींद्रनाथ त्यागी को पढ़ो। जब मैंने उनसे अपने पहले व्यंग्य-संग्रह ‘तिरछी नज़र’ के फ्लैप के लिए कुछ लिखने को कहा, तो उन्होंने बहुत सहजता से कहा, “लिखकर रखूंगा। अगली बार जब आओ तो ले लेना।”

श्रद्धेय शंकर पुणतांबेकर को मैं अपनी रचनाएं डाक से भेजता था। वो, उन्हें पढ़ने के बाद, अपना मार्गदर्शन देते थे। उन्होंने भी कृपापूर्वक मेरी पहली पुस्तक के लिए फ्लैप पर उदारतापूर्वक लिखा।

परसाई जी और पुणतांबेकर जी ने जो कुछ लिखा, उनकी हस्तलिपि में मेरे पास आज भी सुरक्षित है। ये मेरे लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज़ हैं।  इन्हें मैं, इस संस्मरण के साथ, आपसे साझा कर रहा हूं।

परसाई जी ने लिखा:

जगत सिंह बिष्ट विनोद और व्यंग्य लिखते हैं। वे पत्र-पत्रिकाओं में व्यंग्य और विनोद के लेख काफी वर्षों से लिख रहे हैं। उनमें विनोद क्षमता है। वे जीवन की विसंगति विडंबना की पकड़ भी रखते हैं। वे “विट” में क्षमतावान हैं। उनके लेख वास्तविक अनुभवों पर आधारित हैं। वे सामान्यतः दिखावटीपन और झूठी आधुनिकता को व्यंग्य का विषय बनाते हैं। उनका यह पहिला संग्रह प्रकाशित हो रहा है। मुझे आशा है यह पाठकों को संतुष्ट करेगा। वे आगे और अनुभव तथा मनन करके बेहतर रचना करेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है।

-हरिशंकर परसाई

4-1-1992

पुणतांबेकर जी ने लिखा:

व्यंग्यकारों की नई पीढ़ी में जगत सिंह बिष्ट का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह इस में कि विसंगतियों को पकड़ने का उनका अपना अंदाज़ है और वे सहज ढंग से तीखी बात कह देते हैं। बिष्ट के पास तीखी दृष्टि ही नहीं, प्रसंगानुरूप तीखी भाषा भी है जो किसी भी व्यंग्य को सही व्यंग्य बनाती है। व्यंग्य का प्रमुख बिंदु प्रायः राजनीति और राजनेता होता है, किन्तु बिष्ट के व्यंग्य का विषय बहुआयामी है। वे जीवन के सभी क्षेत्रों की विसंगतियों को उतनी ही प्रखरता से प्रस्तुत करते हैं। लेखक व्यर्थ के विस्तार में नहीं जाता, अतः व्यंग्य में जिस चुस्ती और प्रभावात्मकता की आवश्यकता होती है वह उसकी रचनाओं में पूरी संजीदगी के साथ विद्यमान है। आज जब व्यंग्य कॉलमी लेखन के कारण बुरी तरह ढलान पर है, उस दशा में बिष्ट की ये रचनाएं हमें इस बात से आश्वस्त करती हैं कि सही व्यंग्य लेखन की दृष्टि नयी पीढ़ी के व्यंग्यकारों में भी विद्यमान है, पूरी प्रखरता के साथ विद्यमान है।

-शंकर पुणतांबेकर

2.1.92

♥♥♥♥

© जगत सिंह बिष्ट

Laughter Yoga Master Trainer

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and training.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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