श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

(ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है। श्री जगत सिंह बिष्ट जी (Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker) के शब्दों में  “वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।”

दस्तावेज़ में ऐसी ऐतिहासिक दास्तानों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। इस शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है श्री राजेश सिंह ‘श्रेयस’ जी का एक शोधपरक दस्तावेज़ “स्व अटल बिहारी बाजपेयी जी का सानिध्य, मेरे जीवन का अविस्मरणीय क्षण – श्री रामदेव धुरंधर “।) 

☆  दस्तावेज़ # 18 – स्व अटल बिहारी बाजपेयी जी का सानिध्य, मेरे जीवन का अविस्मरणीय क्षण – श्री रामदेव धुरंधर ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

(माँ सरस्वती के आराधन पर्व बसंत पंचमी के अवसर पर माँ वाणी के कृपापात्र प्रख्यात हिंदी साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी (मारिशस) के साथ फोन पर हुई एक वार्ता पर आधारित )

चलिए राजेश जी ! आपसे कुछ बात कर लेते हैं l आप वाराणसी गए थे? कैसी रही आपकी यात्रा? और कवि जयशंकर प्रसाद जी के कार्यक्रम में तो आपको बहुत सारे लोग पहचान गए होंगे l ऐसा कहते — कहते धुरंधर जी ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण एवं आकर्षक संस्मरण मुझे सुना दिया l शायद रामदेव धुरंधर जी यह नहीं समझ पा रहे थे कि मैं उनसे जो बात कर रहा हूँ, वह उनके जीवन से जुड़ा बेशकीमती संस्मरण है, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है l अब इस विषय में कहना ही क्या है l जब एक महापुरुष एक महामानव के विषय में कुछ कहने लगे तो, तो कैसा महसूस होता है, ज़रा यह संस्मरण सुनाने वाले से आप भी सुनिए  – श्री राजेश सिंह ‘श्रेयस’)

श्री रामदेव धुरंधर जी ने कहा कि मेरा घर तो गांव में थाl उम्र 25 – 30 की होगी। हिंदी से मुझे बहुत प्रेम था और मैंने हिंदी में लिखना शुरू कर दिया थाl उम्र कम थी तो बहुत ही हिचकिचाहट और संकोच भी होता था l खैर जो बात आज मैं आपको बताने जा रहा हूं इसे आप सुनिए l मैं सोमदत्त बखोरी जी से बात शुरु करता हूँ। यह बात करते – करते समझिये कि मैं और गहराई में प्रवेश करता जाऊँगा। सोमदत्त बखोरी जी हिंदी के अच्छे साहित्यकार थे l इसके साथ-साथ वे हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री जी के बड़े नजदीकी भी थे और उनका राजनैतिक कद भी काफी ऊंचा था l वे राजधानी पोर्ट लुईस के नगर सचिव भी थे l”

श्री सोमदत्त बखोरी जी उन दिनों लॉन्ग माऊँटेन हिंदी भवन के उप प्रधान थे। लॉन्ग माऊँटेन को धारा नगरी भी कहा जाता था। यह हिन्दी से प्रेरित नाम था। मैंने धारा नगरी अर्थात लॉन्ग माऊँटेन हिंदी भवन में हिन्दी की अपनी अच्छी खासी पढ़ाई की है।

श्री रामदेव धुरंधर 

यहां पर मैं धुरंधर जी के संस्मरण आलेख को रोकता हूं और आपसे अपनी एक बात बताना चाहता हूं l धुरंधर जी ने जब मुझे श्री सोमदत्त बखोरी जी की बात की l उनका नाम लिया, तो मुझे आदरणीया डॉ.नूतन पाण्डेय जी ( सहायक निदेशक केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली ) द्वारा अपने आवास पर भेंट की गई एक पुस्तक “मारिशसीय हिंदी नाटक साहित्य और सोमदत्त बखोरी “ की न सिर्फ याद ताजा हो गई बल्कि उसके प्रति पृष्ठ पर पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेई की पुस्तक भेंट करती हुई, तस्वीर भी याद आ गयी “

अब मैं इस संस्मरण आलेख को आगे बढ़ाता हूं। धुरंधर जी का यह संस्मरण भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी बाजपेई से संबंधित है। धुरंधर जी ने कहा अटल बिहारी जी यहाँ सरकारी मेहमान थे। सरकारी बात तो सरकारी स्तर पर हुई होगी। मैं यहाँ अटल जी के हिन्दी – प्रेम के बारे में आपसे बोल रहा हूँ। हिन्दी के प्रति उनका प्रेम मानो पग पग पर छलक आता था। आपको बता दूँ हिन्दी में उनका पहला कार्यक्रम लोंग माऊँटेन के हिन्दी भवन में हुआ था। तब अटल जी भारत में विरोधी दल के नेता थे। पर यहाँ की सरकार ने उन्हें आमंत्रित किया था। हिन्दी भवन के अध्यक्ष ने कुछ संकोच से कहा आप तो वहाँ विरोधी दल से हैं। अटल जी ने यह बात पकड़ ली थी। उन्होंने जब भाषण शुरु किया तो ‘दल’ शब्द पर बहुत बल दिया। उन्होंने कहा भारत में इतने दल हैं कि मैं क्या कहूँ समझिये कि सभी दल तो बस दल दल में फँसे हुए हैं। उनकी इस बात पर खूब हँसी गूँजी थी। निस्सन्देह हिन्दी में तो उन्होंने बहुत प्यारा भाषण दिया था। श्री अटल बिहारी वाजपेई जी को मॉरिशस में सुनने पर मैंने जाना वे हिन्दी में बड़ी रुचि रखते थे। राजेश जी, वाकई उनके बोलने का अंदाज और हिंदी के प्रति उनका लगाव मेरे लिए अप्रतिम था। उनकी एक अदा थी बोलते — बोलते वे रुक जाते थे। उनकी आँखें बंद रहती थीं। वे नये सिरे से बोलना शुरु करते थे तो मानो हिन्दी में मधुर सी फुहारें झड़ रही हों।

अटल जी तो यहाँ बहुत कम समय के हमारे मेहमान थे। बखोरी जी ने हिन्दी भवन में कहा था अटल जी के सान्निध्य का लाभ उठाने की आकाँक्षा से वे अपने आवास पर एक साहित्यिक गोष्ठी रख रहे हैं। लोग आएँ तो उन्हें खुशी होगी। मैं जाता। इस वक्त कहने से मुझे संकोच नहीं पैसे की दृष्टि से मेरी हालत कमजोर थी। गोष्ठी शाम के तीन बजे रखी जा रही थी। जाहिर था शाम हो जाती। हमारे यहाँ शाम के छह सात के बीच बसों का चलना बंद हो जाता है। यदि वहाँ शाम हो जाती तो मुझे टैक्सी ले कर घर लौटना पड़ता। पैसा तो दो सौ तक जाता। पर मैंने एक तरह से खतरा मोल लिया था। अटल जी के साथ एक संगोष्ठी में बैठना शायद मेरा जुनून हो गया हो। वह शायद मेरी हिन्दी थी और उसके लिए मैं जीवट के साथ तैयार था। गोष्ठी तीन बजे थी तो मुझे घर से तीन घंटे आगे निकलना पड़ता जो मैंने किया था। मैं बस से पोर्ट लुईस पहुँचा। वहाँ से चल कर बखोरी जी के आवास पहुँचने के लिए आधा घंटा लग सकता था। वहाँ बस जाती नहीं थी। मैं टैक्सी ले कर जाता तो पर्याप्त पैसा लगता और जैसा कि मैंने कहा मैं पैसे के मामले में तो मैं बहुत कमजोर था।

मैं सार संकेत से सोमदत्त बखोरी जी का आवास तो जानता था, लेकिन मुझे अपने पैरों से चल कर वहाँ पहुँचना था। उनका आवास पोर्ट लुईस के किनारे में पर्वत की तराई पर था। पर्वत तो दूर से दिख जाता, लेकिन वहाँ बखोरी जी का आवास कहाँ हो यह ठीक – ठीक जानना मेरे लिए कठिन तो होता। पर देश की राजधानी पोर्ट लुईस में मुझे परेशानी होती भी नहीं। एक रास्ता पर्वत की ओर जाता था। मैंने खड़ा हो कर मानो उसका अध्ययन किया और लगे हाथ लोगों से पूछ लिया बखोरी जी का आवास जानते हों तो मुझे बताएँ। मुझे याद है एक आदमी ने मुझे ठीक से बताया था। मेरा काम अब तो बहुत आसान हो गया था। पर्वत से सटे हुए उस रास्ते में वाहन न के बराबर चलते थे। सहसा मुझे पीछे वाहन की आवाज सुनाई दी। मैं किनारे में हट गया। वह एक मोटर थी। कुछ आगे जाने पर मोटर रुक गयी। मैं मोटर तक पहुँचा तो भीतर से आवाज आई आइए धुरंधर जी। यह श्री अटल बिहारी बाजपेयी की आवाज थी। मैं चौंक पड़ा। इसका मतलब हुआ हिन्दी भवन में कार्यक्रम के बाद चाय के अंतर्गत आत्मीय बातचीत के अंतर्गत मित्रों की ओर से मेरा नाम लिया जाना काम आया था। राजेश जी, इस वक्त आपसे कहते मैं गर्व अनुभव कर रहा हूँ अटल जी ने मुझसे कहा था धुरंधर तो मेरा बहुत प्यारा नाम है। मोटर वाली बात आपसे कहता हूँ। अटल जी मोटर की पिछली सीट पर थे। वे एक किनारे में हट गए और मुझे अपने पास बैठने का इशारा कर दिया। मोटर बी. एम. डाब्लियू थी। ड्राइवर ने कृओल में मुझसे कहा था उ एन ग्राँ जीमून [अर्थात आप बहुत बड़े आदमी हैं] ड्राइवर के कथन का सार तत्व था। अटल जी के साथ मैं बैठा हुआ रामदेव धुरंधर उस वक्त सचमुच बड़ा था। उन दिनों के मॉरिशस के सब से महंगे होटल में अटल जी को ठहराया गया था। होटल ग्राँबे में था और उसका नाम पॉल्म बीछ था।

अटल जी ने मुझे बताया उन्होंने आज उन्होंने दिन में एक कविता लिखी है। वे वह कविता संगोष्ठी में सुनाएँगे। पर उन्होंने तो तत्काल मेरे लिए वह कविता पढ़ दी। मैंने अपना यह संस्मरण पहले भी लिखा है। वह कविता मुझे याद भी थी। पर अभी केवल मैं कविता का भाव कह पाऊँगा। वह कविता बहुत मशहूर हुई थी। धर्मयुग में यह छपी थी। जहाँ तक मैं जानता हूँ इस कविता को अटल जी की श्रेष्ठ कविताओं में एक माना गया है। कविता लिफाफा और पत्र पर आधारित है। शायद वह इस तरह से है लिफाफा चाहे कितना सुन्दर हो, लेकिन पत्र को पाने के लिए उसे तो फाड़ा ही जाता है।

इस बात पर आता हूँ मुझे अटल जी के साथ मोटर में बैठने का अवसर मिल गया। पर मैं तो लोगों से रास्ता पूछ कर बखोरी जी के घर जा रहा था। अब तो मुझे किसी से रास्ता पूछना नहीं था l मैं अटल जी के साथ मोटर में बैठकर बखोरी जी के घर पहुंचा l इस वक्त आपको यह बताते मुझे हँसी भी आ रही है। मैं भी मोटर से उतरा था जो एक असंभव प्रक्रिया थी। वहाँ अटल जी उतरे तो क्या पूछना, बखोरी जी, उनकी पत्नी और हिन्दी प्रेमियों ने मिलकर उनका स्वागत किया l

बखोरी जी वकील थे, नगर सचिव थे, लेकिन स्वयं में हिन्दी भी थे। उनकी बहुत कृपा है मुझ पर। भारत में मेरी कहानी छपना धर्मयुग से शुरु हुआ। संपादक थे डा. धर्मवीर भारती। यहाँ बखोरी जी ने अनुराग पत्रिका में मेरी पहली कहानी छापी और यह एक सिलसिला बन गया था।

संगोष्ठी आरंभ होने पर धाराप्रवाह चलती रही। बहुत कम लोग थे। सब को सुनाने का मौका मिला था। अटल जी ने शुरु करने पर मेरा नाम लिया और कहा भी हम मोटर में आ रहे थे तो उन्होंने आज की लिखी हुई अपनी कविता मुझे सुनायी।

मैं अपनी बात यहाँ कर रहा हूँ उस तरह के आलीशान घर में बैठने का मेरा पहला अवसर था। चाय की बात तो इस तरह से थी शक्कर अलग तो दूध अलग। बैठने पर सावधान रहें बैठना ही है तो ठीक से बैठें। जरूर मेरे मन में चल रहा हो मैं हिन्दी जानता हूँ और इस भाषा में लिखना शुरु किया है यही मुझे इस ऊँचाई पर पहुँचा रहा है।

राजेश जी, यह संस्मरण तो मैं आपको और विस्तार से सुना सकता हूँ। इसे किसी और दिन के लिए छोड़ते हैं। अभी मुझे बड़ी ही भाव प्रवणता से याद आ रहा है उस दिन गोष्ठी में कौन – कौन लोग थे। दो चार नाम मैं ले रहा हूँ गुरु जी रविशंकर कौलेसर, नारायणपत्त दसोई, कितारत, रोगेन [अच्छी हिन्दी जानने वाले तमिल] दीपचंद बिहारी, लक्ष्मीप्रसाद मंगरू, बेनीमाधव रामखेलावन, भानुमती नागदान। ये गुजराती महिला थीं। मैंने इन्हें जीवन पर्यंत हिन्दी की लेखिका के रूप में ही जाना। आश्चर्य ही कहें भानुमती नागदान ही एक महिला हुईं जिन्होंने यहाँ हिन्दी लेखन में खास प्रतिष्ठा अर्जित की है।

राजेश जी, मैं अंत में दुख से आपको बताता हूँ जितने नाम मैंने आपको सुनाये इनमें से आज एक भी जीवित नहीं है। दो साल हुए बखोरी जी की शताब्दी मनायी गयी। मंगरू जी लगभग सौ साल में दिवंगत हुए। कौलेसर और मंगरू हिन्दी के मेरे गुरु थे। अब अपने बारे में कह लूँ। आपको यह सुनाने के लिए मैं जीवित रह गया हूँ। मेरी उम्र इनसे तो बहुत कम है, लेकिन मेरा एक स्वाभिमान भी है अपने से बड़े इन लोगो के साथ मैंने उठ — बैठ का रिश्ता बनाया था। बल्कि इन लोगों ने मुझे सुना है और दाद दी है।

अपने इन बडों को मेरा नमन। अटल बिहारी बाजपेयी जी को मेरा पूज्य भाव समर्पित।

राजेश जी, मुझ लगता है मैंने आपको अपना एक दमदार संस्मरण सुनाया। जरूर आपको अच्छा लगा होगाl आपके बारे में कहता हूँ आप लिखते रहिए.. लिखते रहिए. आपको राह में ऐसे ही अच्छे-अच्छे लोग मिल जायेगें l धीरे-धीरे आपकी अपनी अच्छी पहचान हो जाएगी बल्कि पहचान तो हो ही गई है l गंगा की धारा बह रही है l उस धारा में आपको डुबकी लगानी है l डुबकी लगाएंगे तो कुछ ना कुछ तो पाएंगे ही। गंगा जी भी चाहती हों कि उनकी धारा में आप डुबकी लगाएँ और डूबकी लगाने का आपका सौभाग्य तो है ही l आप कोशिश करेंगे तो हो ही जाएगा।

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

माघ, शुक्ल पक्ष पंचमी

दिनांक : 02-02-2025, रविवार ( बसंत पंचमी )

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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Jagat Singh Bisht

रोचक एवं मधुर संस्मरण।

साधुवाद।