श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

(ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है। श्री जगत सिंह बिष्ट जी (Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker) के शब्दों में  “वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।”

दस्तावेज़ में ऐसी ऐतिहासिक दास्तानों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। इस शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है श्री राजेश सिंह ‘श्रेयस’ जी का एक शोधपरक दस्तावेज़ दो देश – दो परिवार, एक संस्कृति एवं एक ही तीज त्यौहार।) 

☆  दस्तावेज़ # 20 – दो देश – दो परिवार, एक संस्कृति एवं एक ही तीज त्यौहार ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

तोर धानवा मोर धानवा एक में मिलाओ रे

मॉरीशस में गंगा तालाब पूज्य गंगा मां सी गयीं

भारतीय विवाह संस्कार में वर और बधु दो पक्ष होतें है l शादी के एक रस्म में जब पहली बार दोनो पक्ष यानि दो परिवार मिलते हैं तो भारतीय अन्न (धान) एवं शुभ प्रतीक (हल्दी) को दोनों पक्ष अपने-अपने घर से गमछे में बाँध कर लातें है l फिर शुरू होती है एक रस्म l जिसे हम हल्दी -धान बांटना कहते हैं l

शादी कराने वाले पुरोहित दोनों पक्ष द्वारा लाये हुए हल्दी और धान को पहले एक में मिलाते हैं और फिर आधा-आधा बाँट कर दोनों पक्ष को वापस दे देते हैं l

भारतीय संस्कृति में इस वैवाहिक विधि का क्या अर्थ क्या है, इस विषय पर हम चर्चा करते हैं l

इस वैवाहिक विधि के भाव को कुछ इस प्रकार समझें कि क्या चाह करके भी इन दोनों परिवार के लोग आपस में इस प्रकार मिल चुके हल्दी और धान में से अपने अपने हिस्से हल्दी और धान का बंटवारा अलग-अलग कर सकतें है?

जी बिल्कुल नहीं कर सकते है l

कहने का अर्थ यह है कि अब जब दो परिवार आपस में मिल गए lयह रिश्ता जन्म-जन्मांतर का हो गया l इन्हें अब अलग किया जाना मुश्किल ही नही असंभव है l

आज इस बात की चर्चा मैं मॉरीशस के साहित्यकार रामदेव जी से कर रहा था l इस बात की चर्चा मैंने क्यों किया इसको समझते हैं –

धुरंधर जी ने शिवरात्रि पर्व की बात की और पूछा कि आपके यहां शिवरात्रि कब है तो मैंने कहा कि मेरे यहां शिवरात्रि 26 फरवरी को है तो उन्होंने कहा कि मेरे यहां भी शिवरात्रि 26 फरवरी को है और मैं देख रहा हूं कि काफी युवा काँवर लेकर के गंगा तालाब की तरफ आगे बढ़ रहे हैं l यह गंगा तालाब जाएंगे और वहां से जल लेंगे और उस जल को शंकर जी के शिवलिंग पर चढ़ाएंगे l

गंगा तालाब क्या है ??

रामदेव धुरंधर कहते हैं – गंगा तालाब को शुरू में परी तालाब के नाम से जाना जाता था l भारतीय लोग उसे परी तालाब ही बोलते थे l मैंने अपने कई साहित्यिक ग्रंथों में उसे परी तालाब कहा है l कालांतर में भारतीय लोगों ने भारत से गंगाजल लाकर एक बड़े धार्मिक विधि विधान से परी तालाब के पानी में मिलाया और उसे उसका नामकरण कर दिया गया गंगा तालाब l

1- गंगा संगम तट प्रयागराज, उप्र (भारत)

2- गंगा तालाब (मारिशस)

चित्र साभार : गूगल

यानी परी तालाब के जल में गंगाजल मिल गया और दोनों एक दूसरे में इस तरह से घुल मिल गए कि मानो दोनों एक हो गए l

अब इन दोनों जल को पृथक कभी नहीं किया जा सकता और इसकी मान्यता एक धार्मिक सरोवर जैसी हो गई, मॉरीशस में गंगा तालाब पूज्य गंगा मां सी गईl

इसका तात्पर्य हुआ कि भारत और मॉरीशस की संस्कृतियों आपस में इस कदर मिल गई हैं कि वे युग युगांतर तक पृथक हो ही नहीं सकती l

रामदेव धुरंधर जी कहते थे कि हम युवा अवस्था में पैदल तो नहीं जाते थे लेकिन साइकिल से हम लोग थे 100 से कुछ काम किलोमीटर मेरे घर से वह जगह होगी वह हम कई लोग कई किलोमीटर की यात्रा कर पहुंचते थे l वहां से हम लोग वापस घर नहीं लौटते थे बल्कि वहां से कुछ दूर आगे एक जगह है त्रयोलेट l

इसके आसपास ही हिंदी के बड़े साहित्यकार अभिमन्यु अनत जी का घर भी है l त्रयोलेट में एक शिव मंदिर है जिसे महेश्वर नाथ जी का मंदिर कहते हैं l हम गंगा तालाब से जल भरकर उस शिव लिंग पर चढ़या करते थे l

(श्री रामदेव धुरंधर जी के फेसबुक पटल में एक पिन किया गया पोस्ट है l जिसमे एक फोटोग्राफ गंगा तालाब का है l इस फोटोग्राफ में माताजी यानी धुरंधर जी की पत्नी का भी चित्र है l यह चित्र गंगा तालाब के पास का ही लिया हुआ है l रामदेव धुरंधर जी इस चित्र से बहुत ही स्नेह करते हैं और इसके ही बहाने वे अपनी धर्मपत्नी स्व.देवरानी जी को याद करते हैं )

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

दिनांक 22-02-2025

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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Jagat Singh Bisht

अत्यंत रोचक और भावपूर्ण। बहुत सरलता और सहजता से अपनी बात कही है।

साधुवाद!

Rajesh Kumar singh

हार्दिक आभार जी