श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “राह में कोई मेहरवान …”।)
ग़ज़ल # 22 – “राह में कोई मेहरवान …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
शायरों ने कहा दिलों में मुहब्बत होती है,
हमने कहा जनाब इंसानी क़ुदरत होती है।
आती है जवानी जिस्म परवान चढ़ता है,
हसीन अन्दाज़ उनकी हसरत होती है।
राह में कोई मेहरवान कद्रदान मिलता है,
बहकना-बहकाना मजबूर फ़ितरत होती है।
जिंस बाज़ार में खुलते हैं सफ़े दर सफ़े,
अरमानों की खुलेआम बग़ावत होती है।
दिलों में मुहब्बत का खेल शुरू होता है,
ज़हन में ग़ुलाम परस्त हसरत होती है।
मुहब्बतज़दा दिलों में झांका ‘आतिश’ ने,
इश्क़ फ़रमाना हुस्न की फ़ितरत होती है।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈