श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “आजकल मिलते नहीं …”)

? ग़ज़ल # 24 – “आजकल मिलते नहीं …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

पीड़ाएं जितनी मिली खामोश ही सहता रहा हूँ।

सुवह  हँसने  के लिये  रात  भर रोता रहा हूँ।

 

खामोशी मेरी बेहतर कुछ समय ही साथ रही है,

घुटती साँसों के दामन आहों से सीता रहा हूँ।

 

आजकल मिलते नहीं यारों के कंधे उधार में भी,

आदतन मैं अपने दर्द खुद घूँट-घूँट पीता रहा हूँ।

 

ज़िंदगी की तकलीफ़ें जुड़ी रही शुरुआत से ही,

हरेक इंसान कहता मिला हमेशा जीतता रहा हूँ।

 

पूरी ज़िंदगी जुगाड़ने में बहुत मशगूल रहा हूँ,

जीवन चलाने ज़हर ज़िंदगी का पीता रहा हूँ।

 

आतिश चैन की नींद बिस्तर में कभी न आई,

अक्सर तकलीफ़ों के तकिए लगा सोता रहा हूँ।

 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हेमन्त तारे

वाह। बेहतरीन अभिव्यक्ति।

Shyam Khaparde

गजब की अभिव्यक्ति, बधाई