श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “बारिश में भीगते चलो जनाब…”।)
ग़ज़ल # 37 – “बारिश में भीगते चलो जनाब…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
बारिश की बूँदों से पूछा रसवन्ती कहाँ से आई हो,
घट-घट में बसी, तुम पूछते हो कहाँ से आई हो।
बारिश ढ़ा रही क़हर बिछड़े-मिले हमदम की तरह,
मुरझाई क्यारी सिहर उठी दुल्हन जैसे अनछुई हो।
जब से नीमबाज़ आँखो की पहली बारिश में नहाए,
बेलौस अरमानों के स्याह बादल बन घिर आए हो।
बारिश में भीगते चलो जनाब आँसू छुप जाते हैं,
सुलगते अरमानों को क्यों पलकों पर सजाए हो।
क्या चारागरी तजवीज़ कीजै मरीज़-ए-इश्क़ की,
जज़्बा-ए-क़ुर्बानी ही उसकी क़िस्मत में लिखा हो।
‘आतिश’ परेशां बीमार का तज़वीज़ क्या नुस्खा हो,
मरीज़-ए-इश्क पर अब दवा-ए-वक्त ही कारगर हो।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈