श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “तुम लफ़्ज़ सम्भाल के बोलो…”)

? ग़ज़ल # 39 – “तुम लफ़्ज़ सम्भाल के बोलो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

दिल से उतरते देर नहीं लगती,

हालात बदलते देर नहीं लगती।

 

तुम लफ़्ज़ सम्भाल के बोलो,

 बात फिसलते देर नहीं लगती।

 

अरमानों पर बंदिश लगाओ,

 ख़ंजर उतरते देर नहीं लगती।

 

भरो चाहो जितनी ऊँची उड़ान,

ख़्वाब टूटते  देर नहीं लगती।

 

हौंसला बुलंद  रखो “आतिश”

जान निकलते देर नहीं लगती।

 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments