श्री सूरज प्रकाश
(ई- अभिव्यक्ति में वरिष्ठ कहानीकार व लेखक श्री सूरज प्रकाश जी का हार्दिक स्वागत है।)
☆ 2021 – खुशियों भरे दिन लौटें ☆
2020 पूरी दुनिया के लिए भारी गुजरा। कल्पना से भी परे। घर छूटे, काम छूटे, करीबी गुज़र गये और दुख की घड़ी में कंधे पर हाथ रख कर सांत्वना भी न दे सके। शादियां, आयोजन, नेक काम, पढ़ाई, नौकरी, प्रोमोशन सब टलते रहे। लोग घर में बंद रहे। अस्पतालों को छोड़ कर सारे संस्थान बंद रहे। जहाज, रेलें, टैक्सियां, बसें नहीं चलीं तो उन्हें चलाने वाले, बनाने वाले, उनकी मरम्मत करने वाले भी बेरोजगार हो गये। और कई तय काम नहीं कर पाये लोग। बेशक कुछ लोग ऑनलाइन या वर्क फ्राम होम करते रहे, होम सर्विस देते रहे, नौकरी, पढ़ाई, कन्सलटेंसी या बैंकिंग बेशक ऑनलाइन करते रहे या घर बैठे करते रहे लेकिन सबकुछ ऑनलाइन नहीं हो सकता। ऐसे बेरोजगार हो गये। स्कूल में घंटी बजाने वाले चपरासी, सर्जरी करने वाले डॉक्टर या ट्रेवल एजेंट या टूरिस्ट गाइड। सूची अंतहीन है।
जुहू तट पर, पार्क में या मॉल में बैठ कर प्रेम करने वाले जोड़ों पर ये बरस बहुत भारी गुज़रा। वे भी ऑनलाइन प्रेम करने पर मजबूर हुए। बेशक लिये दिये जाने वाले उपहार भी कम हुए। उपहार बनाने और बेचने वाले भी बेरोजगार हुए। घरों में बंद बच्चे खेलने, जन्मदिन मनाने या धौल धप्पा करने को तरस गये और सारा सारा दिन सिर और पीठ झुकाए मोबाइल के नन्हें से स्क्रीन पर ऑनलाइन पढ़ाई करते रहे बेशक टीचर की डांट से बचे रहे। ज्यादातर बच्चे इस सुविधा से भी वंचित रहे। पूरी दुनिया सैकड़ों बरस पीछे चली गयी।
महिलाओं की हालत बहुत खराब रही। वे मेकअप करने या नयी साड़ियां खरीदने, पहनने और उसकी तारीफ पाने के लिए तरस गयीं। उनके पति टीशर्ट और नेकर पहन कर ऑफिस के नाम पर घर का एक कोना पकड़ कर लैपटॉप में काम करने के बहाने सोशल मीडिया में बिजी रहे, बहुत कुछ देखते रहे और थोड़ी थोड़ी देर में चाय नाश्ते की फरमाइश करते रहे। कामकाजी महिलाओं और अध्यापिकाओं की हालत और खराब रही। ऑनलाइन काम करने या ऑनलाइन क्लासेस लेने के अलावा उन्हें काम वाली बाई की अनुपस्थिति में घर के सारे काम करने पड़े। सभी, लगभग सभी निजी स्पेस के लिए तरस गये।
कवियों की और भाषणवीरों की मौज़ रही। वे सब के सब ऑनलाइन हो गये। बेशक वे मोबाइल को ही माइक समझ कर दस मिनट तक खटखटाते रहते थे कि क्या मेरी आवाज़ सब तक पहुंच रही है या भोलेपन से पूछते थे कि कोई दिखाई क्यों नहीं दे रहा है।
कुल मिला कर ये बरस भारी गुजरा। सबके लिए।
दुआ है कि आने वाले इक्कीस में पुराने, खुशियों भरे दिन लौटें।
अच्छे दिन अब तो आयें और सब कुछ ठीक हो जाये।
आमीन
© श्री सूरज प्रकाश
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
आभार अभिव्यक्ति टीम। इस स्नेह के लिए।