श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है.

श्री अरुण डनायक जी ने महात्मा गाँधी जी की मध्यप्रदेश यात्रा पर आलेख की एक विस्तृत श्रृंखला तैयार की है। आप प्रत्येक सप्ताह बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ गांधी संस्मरण के अंतर्गत महात्मा गाँधी जी  के महत्वपूर्ण संस्मरण आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ आलेख #90 – गांधी संस्मरण – 1 ☆ 

गांधीजी की धर्म यात्रा

नोआखली अब बांग्लादेश में है और गुलामी के दिनों में यह क्षेत्र पूर्वी बंगाल का एक जिला था, जहां 80% आबादी मुस्लिमों की थी। जिन्ना की मुस्लिम लीग की सीधी  कारवाई या डायरेक्ट एक्शन के आह्वान पर यहां ग्रामीण इलाकों में दंगे हुए। दस अक्टूबर 1946 को शुरू हुए दंगे, जो लगभग एक सप्ताह चले, के दौरान मुस्लिम लीग के गुंडों का आतंक  हिंदुओं पर कहर बन कर टूट पड़ा।  यहां के निवासी हिन्दू जमींदार थे या व्यवसाई, उनके साथ कौन सा ऐसा जुल्म था जो नहीं हुआ। हत्या, बलात्कार , आगजनी, संपत्ति का लूट लेना सब कुछ हुआ , स्त्रियों और बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया। स्त्रियों के ऊपर बलात्कार हुए उनके अंग भंग कर कुएं में फेक दिया गया।  इस सांप्रदायिकता से बचने के लिए हिंदुओं ने वहां से पलायन कर दिया। बीस अक्टूबर तक जब नोआखली से दंगा पीड़ित कलकत्ता पहुंचे तब देश को इस विभीषिका का पता चला।  गांधीजी को जब यह सब समाचार मिले तो वे  नोआखली जाने के लिए व्यग्र हो उठे। उन्होंने कांग्रेस के नेता आचार्य कृपलानी और उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी को तत्काल नोआखली के लिए रवाना किया और उनकी रिपोर्ट मिलते ही स्वयं के वहां जाने की सार्वजनिक घोषणा कर दी।  और फिर गांधीजी 29 अक्टूबर 1946 को कलकत्ता पहुँच गए। उनका कलकत्ता आगमन मुस्लिम लीग के गुंडों को पसंद नहीं आया। उन्होंने गांधीजी को हतोत्साहित करने की खूब कोशिश की। बंगाल के मुख्यमंत्री शहीद सुहरावर्दी तो उनके नोआखली जाने के सख्त खिलाफ थे। पर गांधीजी तो किसी और मिट्टी के बने थे। मुस्लिम लीग के गुंडों के द्वारा पेश की गई अड़चनों, हमलों आदि ने भी उन्हे कर्मपथ से विचलित होने नहीं दिया। वे कलकत्ता में सबसे मिले स्थिति का जायजा लिया और फिर वहां से पूर्वी बंगाल निकल गए जहां विभिन्न ग्रामों में होते हुए अपने दल के साथ 20 नवंबर 1946 को श्रीरामपुर पहुंचे।  यहां से उन्होंने अपने दल के साथियों को अलग गांवों में भेज दिया।

श्रीरामपुर में रहते हुए गांधीजी ने बांग्ला भाषा सीखने का प्रयास शुरू कर दिया और उनके गुरू बने प्रोफेसर निर्मल कुमार बोस। इस गाँव में रहते हुए गांधीजी ने रोज आस पास के गांवों में पैदल जाना शुरू किया, ताकि पीड़ितों को ढाढ़स बँधाया जा सके। पूर्वी बंगाल, नदियों के मुहाने में बसा हुआ क्षेत्र है।  यहां एक गाँव से दूसरे गाँव जाने के लिए नालों को पार करना होता था और इस हेतु बांस की खपच्चियों के बनाए गए अस्थाई पुल एक मात्र सहारा थे। इन पुलों पर चलना आसान न था। फिर भी गांधीजी ने धीरे धीरे इन पुलों पर चलने का अभ्यास किया। गांधीजी का भोजन उन दिनों कितना था ? पाठकों को जानकर आश्चर्य होगा कि गांधीजी मौसम्बी का रस या नारियल के पानी के अलावा एक पाव बकरी का दूध, उबली  हुई सब्जी व जौ, कभी कभी खाखरा और अंगूर तथा रात में कुछ खजूर लेते थे और इस भोजन की कुल मात्रा 150 ग्राम ( दूध के अलावा) से अधिक नहीं होती थी।

गांधीजी अढ़ाई महीने  तक नोआखली में रुके और इस दौरान लगभग 200 किलोमीटर बिना चप्पल के नंगे पैर पैदल चलकर पचास गांवों में लोगों से मिले, उनके घावों में मलहम लगाया, उनके दुखदर्द सुने और उनके आत्मबल को मजबूत करने का प्रयास किया। गांधीजी की यह यात्रा धर्म की स्थापना की यात्रा थी और इस यात्रा का वर्णन पढ़ने से गांधीजी के तपोबल का अंदाज होता है।

जब गांधीजी नोआखली पहुँच गए तो मनुबहन गांधी, जो उन  दिनों सूदूर गुजरात में थी, को इसकी खबर लगी। वे बापूजी के पास जाने को व्यग्र हो उठी।  गांधीजी और मनु बहन व उनके पिता जयसुखलाल गांधी के बीच पत्राचार हुआ और अंतत: मनु बहन 19 12.1946 को श्रीरामपुर, गांधीजी के पास पहुँच गई। वे 02 मार्च 1947 तक गांधीजी के साथ इस यात्रा में शामिल रही और इस दौरान उन्होंने गांधीजी की दैनिक डायरी लिखी। इस डायरी को गांधीजी रोज पढ़ते थे और अपने हस्ताक्षर करते।  मनु बहन की यह डायरी बाद में नवजीवन ट्रस्ट अहमदाबाद द्वारा 1957 में पहली बार प्रकाशित हुई नाम दिया गया एकला चलो रे – (गांधी जी की नोआखली की धर्म यात्रा की डायरी)

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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