श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य – “आचरण की शुद्धता“।)
आचरण की शुद्धता और चरित्र की पवित्रता ऐसे मानवीय मूल्य हैं, जिनकी अपेक्षा हम हर इंसान में करते हैं। हम स्वयं इस कसौटी पर कितने खरे उतरते हैं, शायद हमारे अलावा यह और कोई नहीं जानता।
हमारी बोलचाल, चाल ढाल, रहन सहन और हावभाव के अलावा बुद्धि के प्रयोग का भी इन मूल्यों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। हमें अच्छे लोग आकर्षित करते हैं और बुरे लोग हमारी प्राथमिकता में नहीं आते। यानी हमारी अपेक्षा, पसंद और प्राथमिकता तो सर्वश्रेष्ठ की रहती है, लेकिन हमारा अपने खुद की स्थिति के बारे में हमारा आकलन हमारे अलावा कौन कर सकता है। ।
अपनी थाली में अधिक घी डालने से आपको कौन रोक सकता है। अगर आप ही परीक्षार्थी और आप ही परीक्षक हों, तो अंधा रेवड़ी आखिर किसको बांटेगा। एक सुनार सोने की शुद्धता को तो कसौटी पर परख सकता है, लेकिन उसमें खुद में कितनी खोट है, यह उसे कौन बताएगा।
शायद इसीलिए हमारी नैतिक मान्यताओं के मानदंड व्यवहारिक धरातल पर सही नहीं उतर पाते। हम व्यवहार में अच्छा दिखने की कोशिश तो जरूर करते हैं, लेकिन हमारे मन में खोट होता है। हमें दूसरों के दोष तो बहुत जल्दी नजर आ जाएंगे, लेकिन खुद के नहीं आते। झूठी तारीफ और प्रशंसा के धरातल पर जिस महल का निर्माण किया जाता है, उसकी बुनियाद बड़ी कमजोर नज़र आती है। ।
हम नैतिकता और आदर्श के महल तो खड़े कर लेते हैं, लेकिन उनमें वह गरिमा और दिव्यता नहीं होती, जो इस धरती को स्वर्ग बना दे। स्वार्थ, अहंकार और लोभ के मटेरियल से बना महल भले ही हमें भव्य नज़र आए, लेकिन अंदर से यह खोखला ही होता है।
चरित्र और आदर्श के जितने नालंदा, गुरुकुल और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय आज हैं, उतने पहले कभी नहीं हुए। ज्ञान, विज्ञान, धर्म और अध्यात्म आज अपनी पराकाष्ठा पर है। इतने मठ, मंदिर, आश्रम, जगतगुरु, महामंडलेश्वर, समाज सुधारक और सोने में सुहागा, मोटिवेशनल स्पीकर्स। कितनी पारमार्थिक संस्थाएं, कितने एन जी ओ, रोटरी और लायंस और सबके पास पुण्य और परमार्थ का लाइसेंस। ।
और बेचारा आम आदमी वहीं का वहीं। उसके आदर्श आज भी राम, कृष्ण, बजरंग बली और भोलेनाथ हैं। उसका दुख शायद रुद्राक्ष से मिट जाए या किसी सिद्ध पुरुष की पर्ची से। महल और झोपड़ी, आदर्श और यथार्थ तो यही दर्शाते हैं कि हमारी कथनी और करनी में बहुत अंतर है।
आज कबीर हमारे लिए प्रासंगिक नहीं है, क्योंकि वह हमसे सवाल करता है, हमें खरी खोटी सुनाता है, हमें अपने अंदर झांकने के लिए मजबूर कर देता है। चादर में पांव अब नहीं समाते। हमें चादर बड़ी करनी ही पड़ती है। बड़ा मकान, बड़ी गाड़ी, आवश्यकता बढ़ी !
काजल की कोठरी में दाग तो लगेगा ही, कब तक मैली चादर का रोना रोते रहेंगे। ।
लोग खुद तो सुधरने को तैयार नहीं और हमें निंदक नियरे राखने की सलाह दे रहे हैं। हम ऐसे परामर्शदाताओं की घोर निंदा करते हैं। हम रजिस्टर्ड आय.एस.आई. मार्का दूध से धुले इंसान हैं, खोट कहीं आप में ही है।
आप सुधरे, जग सुधरा..!!
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© श्री प्रदीप शर्मा
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