श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “इमोजी-लॉजी“।)
बचपन में बायोलॉजी-जूओलॉजी, और सोशियोलॉजी से काम पड़ा, तो समझ में आया कि ये सब विज्ञान हैं। फोटोग्राफी, और वीडियोग्राफी अगर शौकिया और पेशेवर विधा है तो स्टेनोग्राफी एक इल्मी विधा !
शॉर्ट हैंड में मेरा हाथ हमेशा तंग रहा क्योंकि संकेतों की भाषा समझना आज भी मेरे बूते में नहीं। लिपि के बारे में आज भी मेरा ज्ञान क, ख, ग और a, b, c के आगे नहीं जाता। जब उर्दू लिपि को देखता हूँ तो सर चकरा जाता है। स्कूल में भी मेरी ग्राफ की कॉपी हमेशा खाली ही रहती थी। आजकल महँगाई का ग्राफ कुछ कुछ समझ में आने लगा है, लेकिन ECG का ग्राफ और इमोजी के संकेत आज भी मेरी समझ से बाहर है।।
कहते हैं, समझदार को इशारा काफी होता है। लेकिन कोई इतना बुद्धू हो कि इशारा ही न समझे, तो कैसे हो प्यार ? कॉलेज में एक कन्या ने इशारा किया, मैं तो न समझ पाया, मेरे साथ वाला दोस्त समझ गया। दोनों करीब हो गए, प्यार हो गया, शादी हो गई। आज दोनों मुझको इशारे से चिढ़ाते हैं।
आजकल समझदार के लिए इशारे और संकेतों का ज़माना है। ड्राइविंग लाइसेंस के लिए भी यातायात के कुछ संकेत होते हैं, स्कूल के लिए यूनिफॉर्म में एक बच्चा दिखा दिया जाता है, तो साइलेंस जोन के लिए एक हॉर्न को क्रॉस कर दिया जाता है। इसी तरह दायें/बाएँ मुड़ना, पार्किंग और एकांगी मार्ग के भी संकेतक होते हैं। और भी हैं, सब जानते होंगे, पालन भी करते ही होंगे।।
लिपि और सांकेतिक भाषा का भी एक विज्ञान है। मूक बधिर केवल हाथ के इशारों और हाव-भाव से अगर संवाद स्थापित कर लेते हैं, तो दृष्टि-बाधित के लिए
ब्रेल लिपि का उपयोग किया जाता है। हमारी भाषा में भी पूर्ण विराम, अर्ध-विराम, विस्मयादिबोधक और प्रश्नवाचक चिन्ह होते हैं, जो भाषा को एक अर्थ प्रदान करते हैं।
इमोजी मेरे लिए एक सुविधा नहीं दुविधा है ! शब्दों के अर्थ जानने के लिए तो शब्दकोश उपलब्ध हैं, अब ये इमोजी की भाषा कौन समझाए। गलत इमोजी गया,
और अपनी इमेज खराब। जिसको जो कहना हो, शुद्ध हिंदी में लिख दो। जिसको करना है वह lol करता रहे। फिल्में देखकर तो omg समझ में आया, सोच सकते हैं मामला कितना नाज़ुक है।।
कभी इमोजी में ढेर सारे फूल आ जाते हैं, तो कभी लाल पीले चेहरे ! एक थैंक यू देता अँगूठा बड़ा प्यारा लगता है। कितने
गुस्सा होते इमोजियों को मैंने अनदेखा किया होगा, कितनों की भावना को मैं पढ़ नहीं पाया हूँगा, इन सभी इमोजियों से क्षमा-याचना। जो भेज रहे हैं, वे भी मनमौजी ही हैं। सब कुछ समझ ही लेते हैं।
इमोजी की बढ़ती लोकप्रियता देखकर कहीं इसे सांकेतिक-भाषा-विज्ञान का अंश न मान लिया जाए ! हो सकता है भविष्य में इमोजी-लॉजी में डिप्लोमा और डिग्रियाँ भी प्रदान की जाने लगे। जो कभी होते थे फैल होते थे, एम ए सोशियोलॉजी में, अब शान से इमोजी-लॉजी में एम ए कर पाएँगे।।
सोचता हूँ किसी इमोजी एक्सपर्ट
से इस बार कुछ समय के लिए इमोजी-की ट्यूशन ले ही लूँ।
कब तक इन इमोजियों से मुँह छुपाता फिरूँगा।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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