श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “नाम की महिमा”।)
संज्ञा हो या सर्वनाम, हमारा नाम के बिना काम नहीं चलता। नाम में ही ईश्वर का वास है, नाम में ही भगवान भी हैं और नारायण भी, फिर भी हमें हमारे मनमंदिर के राम के दर्शन नहीं होते।
बचपन से ही मैं राम के करीब भी रहा हूं, और ईश्वर के करीब भी! नारायण तो मेरा पक्का दोस्त था, कल के भगवान को हम आज भगवान भाई कहकर पुकारते हैं, बड़े अच्छे मिलनसार व्यक्ति हैं। ।
अपने इष्ट और आराध्य को हम जिस भी नाम से स्मरण करते हैं, पुकारते हैं और भजते हैं, वे सभी तो सूक्ष्म रूप में हमारे आसपास मौजूद हैं, लेकिन इस नश्वर जीव पर माया का ऐसा पर्दा पड़ा है, कि वह सिर्फ नाम में ही नहीं, रूप और स्वरूप में भी उलझा है। मंदिर में विराजमान मर्यादा पुरुषोत्तम राम अलग है और मेरा मित्र राम अलग। दोनों की आपस में कोई तुलना नहीं हो सकती।
ईश्वर, परमेश्वर, भगवान अथवा अपने इष्ट को हम जानते, पहचानते और मानते हैं, उनकी जप, पूजा, आराधना, प्रार्थना और सेवा सुश्रुषा करने में जो भक्ति भाव और परमानंद की अनुभूति होती है, वह किसी परिचित गिरीश और जगदीश से मिलने अथवा स्मरण मात्र से संभव नहीं। कहां राजा भोज …. ?
आदर्श अलग होता है और वास्तविकता और हकीकत उससे बहुत अलग होती है। गरीबों, दीन हीन की सेवा ही ईश्वर की सेवा है, माता पिता के चरणों में स्वर्ग है और गौ माता की तो बस पूछिए ही मत। फिर भी मंदिर मंदिर है और गुरुद्वारा गुरुद्वारा। अयोध्या के राम ही वास्तविक राम हैं और मथुरा द्वारका के कृष्ण ही तो कृष्ण कन्हैया हैं।
क्या सिर्फ नाम लेने, स्मरण करने अथवा अपने इष्ट को भजने से ही जीव का कल्याण हो सकता है। कहने को तो कहा भी गया है, कलियुग नाम आधारा! और शायद इसीलिए किसी अपने मित्र नारायण को पुकारते पुकारते आपको भी साक्षात नारायण के दर्शन हो जाएं। ।
हमारे आसपास कितने स्त्री पुरुष के ऐसे नाम मंडरा रहे हैं, जिनके नाम मात्र से ही किसी देवी देवता का स्मरण हो आता है। सीता, सावित्री,
सरस्वती, मंगला, गायत्री और लक्ष्मी जैसे नाम पहले रखे ही जाते थे, आज भी रखे जाते हैं, बस उनकी दशा मत पूछिए, क्योंकि आज सरस्वती काम पर नहीं आने वाली, बेचारी बीमार है।
यह इंसान बहुत चतुर और चालाक है। वह एक तीर से दो शिकार करना चाहता है, रमेश, दिनेश, सुरेश, महेश, अविनाश, अरविंद और कई शैलेष उसके परिचित स्नेही, मित्र, रिश्तेदार और करीबी हैं, आम के आम और गुठलियों के दाम, यानी उनके नाम के बहाने अपने इष्ट का भी नाम लेने में आ जाएगा और पहचान के लिए उनके नाम के आगे वर्मा, सक्सेना, अवस्थी और श्रीवास्तव सुशोभित हो जाएगा। ।
नाम से ही हमारी पहचान है, प्रसिद्धि है। एक राम नाम ही तो हमारे सभी बिगाड़े काम बनाता है।
कहीं खाटू श्याम तो कहीं सांवरिया सेठ, किसी के महाकाल तो किसी के ओंकार। पुणे में अगर दगड़ू सेठ के गणपति की महिमा है तो पूरे महाराष्ट्र में अष्ट विनायक विराजमान हैं। एक और मेरा परम मित्र गणेश मुझे नैनीताल बुला रहा है, तो दूसरी ओर अभिन्न हृदय नारायण जी का प्रयाग राज का आग्रहपूर्ण आमंत्रण लंबित है।
नाम में ही रस और रूप है। महाराष्ट्र के संत गोंदवलेकर महाराज ने नाम के माहात्म्य पर एक पुस्तक लिखी है, प्रवचन पारिजात, जिसमें नाम की महिमा पर उनके ३६५ प्रवचन संकलित हैं। १ जनवरी से ३१ जनवरी तक। रोज एक पृष्ठ पढ़िए, नाम में खो जाइए। राम तेरे कितने नाम। ।
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© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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