श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “लाडली बहना”।)
जब भी राखी का त्योहार आता है, मुझे मेरे पांच मामा और उनकी एकमात्र लाडली बहना, यानी मेरी मां की याद अवश्य आती है। आज न तो मेरी मां जीवित है, और न ही मेरे पांच मामा, बस बाकी बची हैं, उनकी ढेर सारी, यादें ही यादें।
इंसान न जाने क्यों अतीत की तुलना वर्तमान से करता है। आज मेरा ध्यान करोड़ों लाडली बहनों और उनके एकमात्र भाई, हमारे सबके मामा पर जाता है। लगता है, उसके पास कोई कुबेर का खजाना है। मेरा मामा बड़ा पैसे वाला।।
और अचानक फिर मेरी आंखों के सामने, मेरे पांच मामाओं और उनकी लाडली बहना,
यानी मेरी मां का शांत, संतुष्ट और सौम्य चेहरा दिखाई दे जाता है।
मेरा ननिहाल राजस्थान का था, और मेरी मां का ससुराल इंदौर में। कभी किसी राखी के त्योहार पर ना तो मेरे पांच मामाओं में से कोई मामा, अपनी लाडली बहना से मिलने इंदौर आता था और ना ही मेरी मां और उनकी लाडली बहना, राखी के बहाने, उनसे मिलने राजस्थान जाती थी। फिर भी बड़ा दूर का, लेकिन बड़ा करीबी रिश्ता था, हमारे मामाओं और उनकी लाडली बहना, यानी हमारी मां का।
राखी के अवसर पर मेरी मां, मेरे मामा, और अपने पांचों भाइयों को, चिट्ठी जरूर भेजती थी। वह फोन और मोबाइल का युग नहीं था। पोस्ट ऑफिस के लिफाफे में ही राखी भेजी जाती थी, जिसके साथ दो शब्द वाला एक लाडली बहना का खत जाता था, जिसका मजमून मुझ भांजे द्वारा लिखवाया जाता था। एक एक शब्द मुझे आज भी याद है ;
पूज्य भाई साहब,
सादर प्रणाम !
आशा है आप स्वस्थ व प्रसन्न होंगे। पत्र के साथ राखी भिजवा रही हूं। पहन लेना। पूज्य भाभी सा. को प्रणाम, बच्चों को प्यार !
आपकी बहन
(बाई)
मां सिर्फ अपने हस्ताक्षर यानी बाई लिखती थी।
हम भी बाई ही तो कहते थे उन्हें, पांचों भाइयों में सबसे छोटी थी मेरी मां, लाडली तो होगी ही। वापसी में कभी किसी भाई का जवाब आता, किसी का नहीं आता लेकिन मां की राखी हर साल भाइयों के पास अवश्य पहुंच जाती।
वह जमाना सिर्फ भाई बहनों के प्यार का था। कोई गिफ्ट नहीं, कोई उपहार नहीं, कोई मनीऑर्डर नहीं। बस त्याग, और समर्पण ही उन्हें प्रेम के धागों में बांधे रखता था। कोई अपेक्षा नहीं, कोई शिकायत नहीं।।
आज हमारे प्रदेश की लाडली बहनों को मामा की ओर से सौगात ही सौगात मिल रही है। अचानक प्रदेश के मामा में आया यह क्रांतिकारी परिवर्तन हमारे जैसे भांजों को आश्चर्यचकित कर देता है। लाडली बहनों से इतना प्यार और हमारे लिए एक धेला भी नहीं।
इनसे हमारे मामा हजार गुना अच्छे थे, जब भी हम उनसे मिलने ननिहाल जाते, खूब खयाल रखते थे। घी, दूध, मक्खन और पकवान, खूब घुमाना फिराना और जब भी यहां हमसे मिलने आना, कुछ ना कुछ देकर जाना। शायद यही तरीका था उनका, अपनी लाडली बहना को प्यार जताने का।।
आज रिश्तों और प्यार को सौगातों और उपहारों से तौला जा रहा है। बिना स्वार्थ और अपेक्षा के कहां रिश्ते टिक पा रहे हैं। राजनीति में रिश्ते निभाए जा रहे हैं, और रिश्तों में भी राजनीति का प्रवेश हो गया है।
जब महाराज मेहरबान हो जाते हैं, तो मामा और बलवान हो जाते हैं। होगा उनके पास कोई अलादीन का चिराग, जो लाडली बहना पर इतनी सौगातों की वर्षा हो रही है। इधर हम सोच रहे हैं, इस राखी के त्योहार पर हमारी लाडली बहना को क्या सौगात दी जाए।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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