श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “विचार और शून्य“।)
क्या हम हमेशा ही सोचते, विचारते रहते हैं ! होते होंगे कुछ चिंतक और विचारक, लेकिन लगातार कौन सोचते रहता होगा। मेरी मां अक्सर शांत रहा करती थी, वह मितभाषी और मृदुभाषी थी। उनका चेहरा शांत था, लेकिन लगता था, जैसे वह हमेशा कुछ सोचती रहती हो। अगर पूछो तो यही जवाब मिलता था, नहीं कुछ नहीं !
लेकिन साफ नजर आ जाता था कि उनके सोचने की प्रक्रिया में मैने कुछ व्यवधान उत्पन्न कर दिया है। मुझे मालूम था, वह क्या सोचती थी। उन्हें सबकी चिंता रहती थी, वह सदा सबका भला ही सोचते रहती थी।
शायद सबकी मां ऐसी ही हो। हमें अपने आपके बारे में ही सोचने से फुर्सत नहीं मिलती, क्या हम किसी के बारे में सोचें। फिर भी हम सोचते ही रहते हैं, लोगों से विचार विमर्श भी करते ही रहते हैं।।
लिखने के लिए पहले विचार आता है, फिर उस विचार पर हम सोचना शुरू कर देते हैं। वह विचार हमारा विषय बन जाता है। आप सोचते रहें, विचार आते चले जाएंगे, कितनों को आप अपने शब्दों अथवा लेखनी में कैद कर सकते हैं, आप ही जानो। कोई अगर बोलता है तो उसे रेकॉर्ड करना अथवा लिखना फिर भी आसान है, लेकिन हर सोचा हुआ विचार अथवा शब्द मूर्त रूप नहीं ले सकता। मन की गति और सोचने की गति से हम बराबरी नहीं कर सकते।
जब हम कुछ सोचते, विचारते नहीं, तब हम क्या करते हैं। क्या चुपचाप बैठे रहते हैं ! जो भी हमें उस अवस्था में देखता है, यही कहता है, किस सोच में डूबे हुए हो ? तो क्या वाकई हम कभी कभी सोच में इतने डूब जाते हैं, कि हमें यह भी पता नहीं चलता, हम क्या सोच रहे थे।।
होती है एक विचार शून्य अवस्था, जिसमें हमारा चित्त शांत रहता है, और विचारों का आवागमन भी बंद सा हो जाता है, मानो विचारों पर कर्फ्यू लगा हो। पलट, तेरा ध्यान किधर है। सामने वाला नहीं जानता, आपकी अवस्था क्या है, क्योंकि उस समय आपका ध्यान उसकी ओर भी नहीं है।
योग में ध्यान की अवस्था बड़ी विचित्र है। अष्टांग योग में ध्यान का स्थान सातवां है, यानी यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहारऔर धारणा के बाद ध्यान का नंबर आता है, जिसके बाद तो सीधे समाधि ही लग जाती है। नहीं भाई, नहीं उलझना हमें इस योग के झंझट में, खास कर यम नियम की बात तो हमसे करो ही मत। अपने तो आसन वासन भले और बाबा रामदेव वाला अनुलोम विलोम और कपालभाति। और पते की बात बताऊं, साधो, सहज समाधि भली।।
सोचते सोचते कभी हम शून्य में चले जाते हैं, बस वही अवस्था तो विचार शून्य अवस्था है। दो विचारों के बीच कुछ समय ऐसा आ जाता है, जब हम कुछ भी नहीं सोचते, एक शून्य सा व्याप्त हो जाता है, अंदर, बस वही ध्यान है, लेकिन उसका समय बहुत कम होता है। जितनी शून्य की अवस्था बढ़ती जाएगी, उतना ध्यान का समय भी बढ़ता जाएगा।
साधन, चिंतन, मनन और स्वाध्याय सृजन के उत्तम सोपान हैं। शरीर और मन का निरोगी होना ही सहजावस्था है। इस अवस्था में हम खुद से ऊपर उठकर कुछ सोच विचार सकते हैं, कई अच्छे विचार इस समय मन में प्रवेश करते हैं, जिन शुभ संकल्पों का जीवन में क्रियान्वन संभव है। विचार की तरह, शून्य भी एक अनूठी उपलब्धि है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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