श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “वो घड़ी आ गई“।)
वो घड़ी आ गई, आ गई !
मेरा इंडिया अब भारत होने जा रहा है। वही इंडिया जिसे कभी जम्बूद्वीप तो कभी भारतवर्ष कहा करते थे। आजादी के पहले कभी क्विट इंडिया मूवमेंट, यानी भारत छोड़ो आंदोलन हुआ था, अंग्रेज भारत छोड़ भी गए, लेकिन भारत को बांटकर, यानी हिंदुस्तान और पाकिस्तान की नींव डालकर।
हमारा सिक्का चला, संविधान बना। सिक्के के दो पहलू, इंडिया और भारत। भारतीय मुद्रा यानी पेपर करेंसी पर सभी प्रमुख भारतीय भाषाएं अंकित। हर राज्य की अपनी भाषा, हिंदी राजभाषा और अंग्रेजी कामचलाऊ भाषा, यानी जिसके बिना काम ही नहीं चलता हो।।
हिंदी हमारी जुबां है, लेकिन इसमें बोलचाल के इतने अंग्रेजी शब्द समा गए हैं कि कभी कभी तो हमें सामने वाले को शुद्ध हिंदी में समझाना पड़ता है। बैंक, शुद्ध हिंदी है, क्योंकि कभी यही बैंक मेरी रोजी रोटी रही है। स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी और बुक्स के बिना तो आज भी काम नहीं चलता। ट्यूशन तो हमारे जमाने में भी होती थी, लेकिन आजकल कोचिंग का जमाना है।
सम्पूर्ण क्रांति के पहले हमारे यहां भाषा को लेकर भी एक बार क्रांति हुई थी, लोहिया का अंग्रेजी हटाओ आंदोलन ! अच्छी तोड़फोड़ भी हुई, लेकिन अंग्रेजी ना हटी सो ना हटी, और अंगद के पांव की तरह ढीठ होकर जमकर बैठ गई।।
जब आप बाजार में सौदा लेने जाते हो, तो झोले के साथ वही भाषा और करेंसी लेकर जाते हो, जो बाजार में चलती हो। दुकानदार भी आपसे उसी भाषा में बात करता है, जो आप समझ सकते हो। आज हम इतने डिजिटल हो गए हैं, कि बिना पर्स यानी पैसे के भी सारी खरीददारी कर सकते हैं।
एवरीथिंग ऑनलाइन।
पिछले कुछ वर्षों में हम ग्लोबल भी हो गए। जिसका श्रीगणेश मेक इन इंडिया मूवमेंट से हुआ। जिसके बाद तो विकास का तांता ही लग गया। शाइनिंग इंडिया, डिजिटल इंडिया, फिटनेस इंडिया और स्टार्ट अप इंडिया इसका ही परिणाम है।।
फिल्मों में भी राष्ट्रीय भावना का ऐसा बोलबाला रहा कि आय लव माय इंडिया पर कितने ही गीत चल निकले। एक बेचारे उपकार वाले मनोज कुमार अकेले कहते गए, भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात बताता हूं।
खुशी का विषय है, हम जो पहले से ही हिंदुस्तानी थे, अब इंडियन से भारतवासी हो गए और जो नॉन रेसिडेंट इंडियन यानी एनआरआई हैं, उनको तो हमने पहले से ही प्रवासी भारतीय का दर्जा दिया हुआ है। कुछ नहीं मिटेगा, भारत वही रहेगा, बस इंडिया अब भारत हो जाएगा।।
हमारे नेता अब जब विदेश जाएंगे तो उन्हें भी अपने अंग्रेजी प्रेम से थोड़ा परहेज करना पड़ेगा, क्योंकि अब वहां भी उन्हें भारत भारत ही कहना होगा, इंडिया नहीं। जिस जबान पर कभी इंडिया चढ़ा था, अब उस पर भारत सवार हो जाएगा।
हम तो खुश हैं भाई, हम तो पहले भी भारतीय थे, आज भी भारतीय हैं। लेकिन हां, हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, हमारा भारत फिर से भारतवर्ष यानी जम्बूद्वीप बन जाए। वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा सपना नहीं, एक हकीकत बन जाए।।
जय जगत
जय भारत, जय हिंद !
© श्री प्रदीप शर्मा
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