श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य – “जीवन बीमा पर जीएसटी”।)
आय, बचत और कर, यही एक नौकरपेशा व्यक्ति का धर्म है, ईमान है। न वह अपनी आय बढ़ा सकता, न ही बचत बढ़ा सकता, और न ही करभार से मुक्त हो सकता। वह देश की व्यवस्था में जुता हुआ एक बैल है, जिसकी आँख पर पट्टी पड़ी है। वह फिर भी एक अच्छे भविष्य के सपने देखता है। हर माह अपनी आय में से कुछ पैसे जीवन बीमा के लिए सुरक्षित छोड़ देता है।
हर माह एक सीमित वेतन ले जाने वाला वेतनभोगी मार्च के पहले से ही एनएससी और इन्शुरन्स में निवेश करना शुरू कर देता था। कुछ कमीशन एनएससी वाला एजेंट तो कुछ जीवन बीमा का एजेंट दे देता था। बड़ी खुशी होती थी, जब हाथ में पाँच सौ, हज़ार के कड़क नोट आ जाते थे।।
मेरी नौकरी को जुम्मे जुम्मे कुछ ही माह हुए थे, कि एक मित्र के भाई घर तशरीफ़ लाये। उनके साथ जीवन बीमा का प्लान भी था। बोले आपने एलआईसी की पॉलिसी ली ? मैं कुछ समझा नहीं ! मैंने जवाब दिया, अभी तक तो किसी ने नहीं दी। वे और खुश हुए, कोई बात नहीं, अब ले लीजिए। वे मुझे ज़िन्दगी का छोड़, मरने का गणित समझाने लगे। मुझे लगा यह इन्शुरन्स एजेंट नहीं, चित्रगुप्त के एजेंट हैं। मुझे मरने के फायदे समझा रहे हैं।
वे थोड़े आहत हुए। देखिये ! हमें आपकी बीवी बच्चों की फिक्र है। ( तब मेरी शादी नहीं हुई थी ! ) उन्हें अपना टारगेट पूरा करना था। मैंने कहा, काम की बात कीजिये। कोई भी सस्ती सी पॉलिसी दे दीजिये, और वे बेचारे उस ज़माने में एक छोटी सी पॉलिसी मुझे देकर चले गए, जिसका प्रीमियम कुछ 18.29 पैसे मेरी तनख्वाह में से कटना शुरू हो गया।।
उम्र के इस आखरी पड़ाव में फिर मुझे एक जीवन बीमा की पॉलिसी लेनी पड़ी। मुझे घोर आश्चर्य हुआ जब एक लाख पॉलिसी पर मुझे 18% जीएसटी भी चुकाना पड़ा। जीते जी भरिए मरने का टैक्स, अगर आपको बचाना इनकम टैक्स।
एक राजा हरिश्चन्द्र हुए थे, जो अपनी पत्नी से कफ़न पर टैक्स लेते थे, और एक यह सतयुगी हरिश्चन्द्र की सरकार है जो जीवन बीमा पर भी जीएसटी लेती है। कुछ भी खरीदो, ज़िन्दगी या मौत !
दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा। जीवन बीमा है अगर, जीएसटी तो देना ही पड़ेगा।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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