श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दिल की नज़र से“।)
अभी अभी # 166 ⇒ दिल की नज़र से… श्री प्रदीप शर्मा
दिल तो हम सबका एक ही है, लेकिन अफसाने हजार !
आँखें तो सिर्फ दो ही हैं, लेकिन ये नज़र कहां नहीं जाती। आपने सुना नहीं, जाइए आप कहां जाएंगे, ये नजर लौट के फिर आएगी। आँखों का काम देखना है, और दिल का काम धड़कना। आँखों में जब नींद भर जाती हैं, वे देखना बंद कर देती हैं, और इंसान बंद आंखों से ही सपने देखना शुरू कर देता है, लेकिन बेचारे दिल को, चैन कहां आराम कहां, उसे तो हर पल, धक धक, धड़कना ही है।
ऐसा क्या है इस दिल में, और इन आँखों में, कि जब मरीज किसी डॉक्टर के पास जाता है, तो वह पहले कलाई थाम लेता है और बाद में उसके यंत्र से दिल की धड़कन भी जांच परख लेता है। और उसके बाद नंबर आता है, आंखों का। आंखों में नींद और ख्वाब के अलावा भी बहुत कुछ होता है। बुखार में आँखें जल सकती हैं, आँखों में कंजक्टिवाइटिस भी हो सकता है। शुभ शुभ बोलें। ।
दिल जिसे चाहता है, उसे अपनी आंखों में बसा लेता है, और फिर शिकायत करता है, मेरी आंखों में बस गया कोई रे, हाय मैं क्या करूं। अक्सर दिल के टूटने की शिकायत आती है, और दिल के घायल होने की भी। जब कोई नजरों के तीर कस कस कर मारेगा, तो दिल को घायल तो होना ही है।
ईश्वर ने हमारा हृदय बड़ा विशाल बनाया है शायद इसीलिए कुछ लोग दरियादिल होते हैं। आप दिल में चाहें तो एक मूरत बिठा लें, और अगर यह दिल पसीज जाए तो दुनिया के सभी दुख दर्द इसमें समा जाएं। ।
हमारी आंखों ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेलीं ! बसो मेरे नयनन में नंदलाल ! मोहिनी मूरत, सांवरी सूरत, नैना बने बिसाल। किसी को आंखों में बसाने के लिए पहले आंखों को बंद करना होता है। बाहरी नजर तो खैर कमाल करती ही है, एक अंतर्दृष्टि भी होती है, जो नेत्रहीन, लेकिन प्रज्ञाचक्षु भक्त सूरदास के पास मौजूद थी। कितना विशाल है हमारी अंतर्दृष्टि का संसार।
लेकिन इस जगत के नजारे भी कम आकर्षक नहीं ! नजरों ने प्यार भेजा, दिल ने सलाम भेजा और नौबत यहां तक आ गई कि ;
मुझे दिल में बंद कर दो
दरिया में फेंक दो चाबी।
यह कुछ ज्यादा नहीं हो गया। लेकिन यह तो कुछ भी नहीं, और देखिए ;
आँखों से जो उतरी है दिल में
तस्वीर है एक अन्जाने की।
खुद ढूंढ रही है शमा जिसे
क्या बात है उस परवाने की। ।
जरूर आँखों और दिल के बीच कोई हॉटलाइन है।
ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि कोई चीज आपको पसंद आए, और उसके लिए आपका मन ना ललचाए। ये दिल का शब्द भंडार भी कम नहीं। जी, कहें, जिया कहें अथवा जिगर कहें। आपने सुना नहीं, नजर के सामने, जिगर के पास।
नज़ारे हम आँखों से देखते हैं, और खुश यह दिल होता है। गौर फरमाइए ;
समा है सुहाना, सुहाना
नशे में जहां है।
किसी को किसी की
खबर ही कहां है।
………..
नजर बोलती है
दिल बेजुबां है। ।
आजकल हम दिल की बात किसी को नहीं कहते। आप भी शायद हमसे असहमत हों, लेकिन नजर वो, जो दुश्मन पे भी मेहरबां हो। जिन आंखों में दर्द नहीं, दिल में रहम नहीं, तो हम क्यों बातें करें रहमत की, इंसानियत की।
शैलेंद्र ने सच ही कहा है ;
दिल की नजर से
नजरों के दिल से
ये बात क्या है
ये राज़ क्या है
कोई हमें बता दे। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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