श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “किलकारी”।)

?अभी अभी # 184 ⇒ किलकारी? श्री प्रदीप शर्मा  ?

बहुत दिनों बाद एक बच्चे की किलकारी सुनी। किसी के लिए भले ही यह एक रोजमर्रा का अहसास हो, जो बच्चों के बीच रहते हैं, उन्हें संभालते, पालते पोसते रहते हैं, कई नर्सरी और केजी स्कूल होते हैं, बाग बगीचे होते हैं, जहां बच्चों को हंसते खेलते, मुस्कुराते, किलकारी मारते देखा जा सकता है।

आपको अगर प्रकृति के करीब जाना है, तो कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं, बस पास के किसी बच्चे के पास चले जाइए। हम जब बच्चे थे, तो यही हमारी दुनिया थी, जैसे जैसे हम बड़े होते चले गए, बचपन दूर होता चला गया। बच्चों से जुड़ना, अपने बचपन से जुड़ना है।।

कल ही निदा फाजली का जन्मदिन था। उनकी ही गजल के कुछ शब्द हैं ;

फूलों से न तितली को उड़ाया जाए

अगर मस्जिद बहुत दूर है,

क्यूं न किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।।

बच्चे हमारी नकल करते हैं, वे हमसे ही तो सीखते हैं। लेकिन इनका बाल स्वरूप, लीला स्वरूप होता है, हम बच्चों को नहीं खिलाते, वे हमें खिलाते हैं। खेलने खाने में बहुत अंतर होता है। हमने जब से तमीज से खाना सीख लिया, हम खेलना ही भूल गए। एक बच्चे को खेलना सिखाना नहीं पड़ता, हां भूख लगने पर कुछ जबरदस्ती खिलाना जरूर पड़ता है।

बात किलकारी की हो रही थी। कोयल की कूक नहीं, लता की सुरीली आवाज नहीं, उन सबसे अलग होती है, बच्चे की एक किलकारी। अक्सर जॉन कीट्स की एक कविता Ode to a Nightingale से लिए गए वाक्यांश full throated ease का जिक्र होता है।

हिंदी में अगर उसे अभिव्यक्त किया जाए तो, पूरी सहजता, ही कहा जाएगा।।

सहजता और सरलता ही तो प्रकृति है।

इसीलिए एक बच्चे के मुख में प्रकृति ही नहीं, पूरा ब्रह्माण्ड समाया हुआ है, जिसका दर्शन सिर्फ यशोदा कर सकती है, लेकिन माया उसे वापस ढंक लेती है। प्रकृति और ईश्वर के कुछ रहस्य जाने तो जा सकते हैं, लेकिन किसी को बताए नहीं जा सकते। कह लीजिए इसे गूंगे का गुड़।

लेकिन बच्चे के साथ ऐसा कहां ! जिसे कीट्स full throated ease कहते हैं, वही पूरी सहजता एक बच्चे की किलकारी में समाई हुई है, लेकिन बच्चा कोई चाबी का खिलौना नहीं, कि इधर चाबी भरी, और उधर उसने किलकारी भरी। वह अपनी मर्जी का मालिक है, सभी हठ, अलग हट, यही तो है बालहठ।।

मंदिर जाकर बच्चा क्यों मांगा जाए, जब अपने आसपास ही किसी के घर में नन्हा बच्चा मौजूद हो।

बच्चा अमीर गरीब नहीं होता, न ही उसकी कोई जात पात होती है। वह तो स्वयं ईश्वर स्वरूप होता है।

काग के भाग तो तब ही जाग गए थे, जब वह हरि हाथ से माखन रोटी ले गया था। अगर आपके भाग भी जाग गए, तो शायद आप भी सुन लें, उसकी सहज, सरल, अकस्मात् विस्मित और चकित कर देने वाली मनमोहक किलकारी।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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