श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आंख से टपकी जो चिंगारी”।)
अभी अभी # 186 ⇒ आंख से टपकी जो चिंगारी… श्री प्रदीप शर्मा
सुबह सुबह विविध भारती लगाया, तो ये शब्द कानों में पड़े;
आंख से टपकी जो चिंगारी
हर आंसू में छवि तुम्हारी।
ऐसा लगा आंसू आंख से नहीं, आकाश से टपका हो। मेरा पूरा ध्यान केवल एक शब्द “टपकी” पर टिक गया। मेरे कानों ने टपकने की आवाज साफ सुनी, क्योंकि यह शब्द रफी साहब ने टपकाया था।
गीतकार तो गीत लिख देता है, फिर उसकी धुन संगीतकार बनाता है और गायक उसको गाता है।
यह एक शब्द की यात्रा है, जो जब किसी धुन में बांधकर किसी गायक के गले से बाहर निकलता है, तो अमर हो जाता है। ये आंसू मेरे दिल की जुबान है।।
अक्सर जब हम किसी गीत को सुनते हैं, तो अनायास ही बहते बहते किसी जगह ठहर जाते हैं, कभी कोई शब्द हमें छू जाता है, तो कभी कोई धुन। और कहीं गायक का अंदाज हमें मंत्रमुग्ध कर देता है।
रफी साहब के बारे में कहा जाता है कि वे गीत को अपनी स्टाइल में नहीं, अदाकार की स्टाइल में गाया करते थे। उनके मन में सभी संगीतकारों के लिए सम्मान था, और उन्हें भी इतनी छूट थी कि वे गाने को अपने हिसाब से गाएं। और शायद इसी कारण जब उनकी आवाज में आंख से चिंगारी टपकी, तो उस पर मेरा ध्यान चला गया। “टपकी” उन्होंने जिस अंदाज़ में गाया, यह उनका अपना अंदाज था, अपना प्रयोग था।।
पूरा गीत एक ठहराव लिए हुए है। लगता है मानो पूरा गीत रफी साहब ने आंसुओं में डूबकर ही गाया है। और अगर संगीत की भाषा में कहें तो आंसुओं में बहते बहते गाया है। धुन भी इतनी प्यारी और दर्द भरी, कि बस सुनने और गुनगुनाने का मन करे।
गीत में केवल तीन अंतरे हैं, लेकिन पूरे आंसुओं की दास्तान कह जाते हैं। जो आंसुओं की जबान जानता है, वही इस दर्द को महसूस कर सकता है, जब आंख से आंसू नहीं चिंगारी टपकती है। रफी साहब उस दर्द को महसूस करते हुए जब अपना सारा गायकी का हुनर “टपकी” पर लगा देते हैं, तो यह गीत अमर हो जाता है। ऐसे कमाल रफी साहब अक्सर अपने गीतों में किया करते हैं ;
आंख से टपकी जो चिंगारी
हर आंसू में छवि तुम्हारी।
चीर के मेरे दिल को देखो
बहते लहू में प्रीत तुम्हारी।।
ये जीवन जैसे सुलगा तूफान है …
हसरत जयपुरी, शंकर जयकिशन और इनके हमराही रफी साहब ने मिलकर ये आंसुओं का सैलाब जो बहाया है, उसके बारे में सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि ये गीत मानो बहते आंसुओं का प्रवाह है …!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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