श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जश्न और त्रासदी “।)
अभी अभी # 192 ⇒ || चौपाल || श्री प्रदीप शर्मा
हम कभी गांव नहीं गए, क्योंकि गांव ही अब तो चलकर शहर आ गए हैं। एक समय था, जब साइकिल उठाई कुछ किलोमीटर चले, तो गांव ही गांव, खेत ही खेत, चौपाल ही चौपाल। आजकल कार से फॉर्म हाउस और रिसॉर्ट जाया जाता है, जन्मदिन की पार्टियों और विवाह समारोहों में।
गांव का लुत्फ लोग चोखी ढाणी और राजस्थानी ढाबे में ही उठा लेते हैं।
प्रेमचंद और रेणु की कहानियों में अवश्य चौपाल का जिक्र आया होगा। गांव के किसी बड़े पेड़ के नीचे किसी बड़े ओटले पर केवल पुरुष अपनी चौपाल जमाते थे।
घर गृहस्थी, खेती बाड़ी, सुख दुख और राजनीति की ही चर्चा होती होगी चौपाल में। कोई साक्षर अखबार का वाचन करता होगा, कुछ पुरुषों के ग्राम्य गीत गाए जाते होंगे, बीड़ी सिगरेट तंबाकू और बारी बारी से हुक्का गुड़गुड़ाया जाता होगा।।
एक आदर्श ग्राम में कभी चाय और पान की दुकान का जिक्र नहीं होता। शराब की दुकान की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। मेरे सपनों का गांव हमारा आदर्श ही रहा है। अच्छे सपने देखने से दिन भी अच्छा ही गुजरता है।
आजकल ई -चौपाल और ई -शिक्षा का जमाना है। हमारे माननीय प्रधान मंत्री और लाडली बहना वाले मामा एक मिली जुली ई – चौपाल का आयोजन राजधानी में करते हैं, जिसमें प्रदेश के पूरे गांववासी, उनके प्रतिनिधि और जिला कलेक्टर जुड़ जाते हैं और समस्याओं का डिजिटल निराकरण भी हो जाता है। मन रे, तू कोई गीत सुहाना गा। मनरे ..गा।।
मैं भी अपने अभी अभी के नित्य कर्म से निवृत्त होकर सुबह सुबह फेसबुक की चौपाल पर चला आता हूं। मेरी आंखों को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता। हेमा जी पहले से ही चौपाल में मौजूद रहती हैं।
उधर देहरादून से सैनी जी ताक लगाए बैठे रहते हैं। नेपथ्य में रैना जी की मौजूदगी हमेशा महसूस होती रहती है।
चैन और सुकून से चर्चा ही तो चौपाल का उद्देश्य होता है। चर्चा को चैट यूं ही नहीं कहते। हेमा जी का क्या है, कभी मीरा तो कभी महादेवी, कभी प्रवासी तो कभी एलियन।
कभी इस चौपाल में पंडित प्रदीप मिश्रा के साथ सत्संग होता है तो कभी जैनेंद्र कुमार जी से। कलयुग के दीपक यादव को अगर आप सुनें तो लगेगा, भटके हुए ओशो हैं। सुबह सुबह का स्वस्थ और सार्थक संवाद चौपाल जैसा ही सुख देता है। अखबार के पन्ने की तरह खुलती बंद होती रहती है फेसबुक की चौपाल, चाय की चुस्कियों और जरूरी कामकाज के बीच। हमारी चौपाल में आपका स्वागत है।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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