श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “॥ माता का दरबार॥ “।)
अभी अभी # 194 ⇒ ॥ माता का दरबार॥ श्री प्रदीप शर्मा
🙏 प्रार्थना 🙏
॥ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं कएईल ह्रीं हसकहल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं ॥
हे सदगुरु स्वरूपिणी त्रिपुर सुंदरी मां अम्बे ! मैं तेरी शक्ति एवम् आशीर्वाद से ही तेरा नाम स्मरण करता हूं। यह नाम स्मरण केवल जगत कल्याण की भावना से प्रेरित होकर ही किया जा रहा है। जगत, काम, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष एवं अहंकार की अग्नि में जल रहा है। भांति भांति के विकारों से ग्रसित, यह जगत, हे मां, तेरी कृपा का पात्र है। सभी जीवों के मन में राग द्वेष को दूर कर शीतलता प्रदान करो। सभी मित्रों और विरोधियों के प्रति मेरे हृदय में मंगल कामना तथा मित्र भाव पैदा करो, और सबके हृदय में मेरे प्रति मित्र भाव। सभी लोगों में परस्पर प्रेम भाव, सद्भाव तथा कल्याण भाव हो, सबकी सेवा साधना में वृत्ति हो।
हे मां ! तू जग कारिणी, जग तारिणी है, हम विकारों में जलते हुए जीव, तेरे चरण छोड़कर, किसकी शरण ग्रहण करें। हे मां ! हमारी पुकार सुनो, हमारी पुकार सुनो, हमारी पुकार सुनो।
🕉️ माता का दरबार 🕉️
यह किसी सम्राट, शहंशाह, बादशाह अथवा महाराजा का दरबार नहीं, माता का दरबार है। यहाँ दरबारियों, सेवकों और नव-रत्नों की दरकार नहीं, नवरात्रि तक स्वयं नवदुर्गा अपने नौ दिव्य-स्वरूपों से दरबार को सुसज्जित करेगी। माता का जगराता है ! यहाँ जो भी आता है, शीश झुकाता है, मन-माफिक मुरादें पाता है।
दरबार हमेशा किसी ऊँचे स्थान पर होता है। हमारी माता तो पहाड़ां वाली और शेरां वाली है। पहाड़ों पर ही उसका दरबार लगता है, और हमारी माँ अम्बे, जगदम्बे शेर की सवारी करती है।।
वह सबसे पहले माँ है, जगत-जननी है। उसका जन्म ही जगत कल्याण के लिए हुआ है। वह दिन-रात, आँधी-तूफान, जंगली जानवरों और नर-पिशाचों से अपने पुत्रों की रक्षा करने में सक्षम है। वह अगर आनंदमयी, चैतन्यमयी, सत्यमयी परमी है, तो महाकाली, दुर्गे और अम्बे भी है।
एक पुत्र के लिए माँ का स्वरूप वत्सला, ममता, दया और करुणा का होता है। जब तक बच्चा अबोध है, अनजान है, असहाय है, कमज़ोर है, माँ उसे अपने आँचल से चिपकाये रहती है, उसकी भूख-प्यास मिटाती है, उसका लालन-पालन करती है, लेकिन जैसे ही पंछी ने पर फड़फड़ाये, माँ उसे आज़ाद कर देती है।।
लेकिन यही आज़ाद पंछी जब बाज बनकर इंसानियत को कलंकित करता है, तो वह उसके पर नोच लेती है। डाकिनी, पिशाचिनी महाशक्ति बन इन असुरों का संहार भी करती है। लेकिन एक भक्त के लिए वह सिर्फ माँ सरस्वती है, महालक्ष्मी है, उसकी अपनी वसुंधरा है।
जो रामराज्य का सपना देखते हैं, उन्हें राम के समान वनवास के लिए भी तत्पर रहना चाहिए। कितने राक्षसों का संहार हुआ रामराज्य के पहले ! क्या हम अपनी सीता की अग्नि परीक्षा के लिए सहमत होंगे। लक्ष्मण रेखा पार करने के परिणाम तो हमें भुगतने ही होंगे।।
एक आल्हादिनी शक्ति का हमारे अंतस में भी वास है। उस शक्ति को जगाना ही नवरात्रि का व्रत-उपवास-डांडिया रास है। मन पर विजय ही विजयादशमी है।
मन के शत्रुओं का संहार ही नवरात्रि का त्योहार है।
माता का दरबार सजा है। वही जगदम्बे है, वही माँ चामुण्डा है। श्रद्धा, भक्ति और विवेक की सीढ़ियां चढ़ने पर ही उस जगत-माता के दर्शन आपको जन जन में व्याप्त माँ, बहन और बेटी में होना संभव है। जिस धरती पर नवरात्रि में कन्याओं को पूजा जाता है, उन्हें पाँव छूकर प्रणाम किया जाता है, क्या वह सिर्फ नौ दिन का ही एक उत्सव है, दिखावा है। हर पल जब नवरात्रि होगी, तब ही वह माँ का सच्चा जगराता होगा।।
“अम्बे मात की जय !”
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© श्री प्रदीप शर्मा
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