श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मटरगश्ती…“।)
अभी अभी # 216 ⇒ मटरगश्ती… श्री प्रदीप शर्मा
मैं लाल लाल टमाटर नहीं, हरा भरा मटर हूं, हरा भरा अर्थात् मेरे अंदर भी हरा भरा, और मैं बाहर से भी हरा। मुझे अंग्रेजी में pea कहते हैं और मैं भी बीन्स प्रजाति का ही एक सदस्य हूं।
दाने दाने पर लिखा है छीलने वाले का नाम। मुझे जो छीलता है, वह पहले मुझे चखता है और अगर मैं मीठा हुआ, तो मेरी खैर नहीं। मालवा की काली मिट्टी में मैं बटले के नाम से जाना जाता हूं। ठंड के मौसम में मैं हर सब्जी वाले के पास, और हर घर में बहुतायत से उपलब्ध होता हूं।।
रसोई घर में ऐसी कोई सब्जी नहीं, जिसमें मेरा योगदान ना हो। पुलाव हो या बिरयानी, आलू गोभी हो या पत्ता गोभी, जहां टमाटर, वहां भी मौजूद हरा भरा मटर। मटर पनीर बच्चों, बड़ों, सभी की पसंद भी रही है, और कमजोरी भी। कल ही हमने मैथी, मटर, मलाई बनाई।
ठंड के मौसम में हर सब्जी में गश्त लगाना मेरा कर्तव्य भी है और अधिकार भी।
जब कभी होटलों में किसी सब्जी के बारे में एकमत नहीं होते, तब मिक्स वेज का नंबर आता है। जिसे सब्जी में से बच्चे चाव से बीनकर खाते हैं, वही तो बीन्स कहलाते हैं।।
आलू और भुट्टे की कचोरी की तरह ही बटले की भी कचोरी बनाई जाती है। मौसमी स्वाद अपनी जगह है, फिर भी त्वरित उपयोग के लिए यह मटर आजकल बारहों महीने सुफला के नाम से हर जगह उपलब्ध होता है। समझदार गृहणियां तो सीजन में सस्ते मटर फ्रीज में संभालकर रख लेती हैं।
इस मौसम में घरों में मटर का आना, बच्चे बड़े सभी मटरगश्ती करते हुए, एक एक दाना मुंह में रखते जाते हैं और उधर बेचारे बचे हुए मटर सब्जी, पुलाव सहित अन्य स्वादिष्ट डिशेज में मटर गश्ती करते देखे जा सकते हैं। बहुत सस्ते हैं, स्वादिष्ट हैं, दानों से भरपूर हैं, हरे भरे मटर।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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