श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “अच्छा बनना…“।)
अभी अभी # 223 ⇒ अच्छा बनना… श्री प्रदीप शर्मा
एक कप अच्छी चाय बनाना ! चाय अच्छी बननी चाहिए। हर इंसान भी चाय की तरह अच्छा बनना चाहता है। मैंने लोगों को बुरी चाय को फेंकते भी देखा है। ऐसे लोग बुरे इंसानों को भी अपने जीवन से निकाल फेंकते हैं। क्या ऐसे लोग खुद अच्छे हैं, इसका मेरे पास कोई उत्तर नहीं।
कोई यह कहने को तैयार नहीं कि वह बुरा है। इसका तो यही मतलब हुआ कि सभी अच्छे हैं, जगत में कोई बुरा नहीं। फिर ये बुरे लोग और बुराई कहां है। मत पूछो बुराई कहां नहीं। लोग बहुत बुरे हैं, ज़माना बहुत बुरा है। हमारे जैसे अच्छे लोगों के रहने लायक बिल्कुल नहीं। क्या आपको किसी में बुराई नजर नहीं आती। कैसे आदमी हो। ।
लगता है, हमारा जन्म ही एक अच्छे इंसान बनने के लिए हुआ है। बड़े भाग मानुष तन पाया। बच्चे कितने अच्छे होते हैं। उन्हें अच्छा बनना नहीं पड़ता। लेकिन जैसे जैसे वे बड़े होते जाते हैं, हम उन्हें अच्छा बनाने में लग जाते हैं। पढ़ोगे लिखोगे, बनोगे नवाब ! खेलने कूदने से बच्चे खराब हो जाते हैं, अब विराट और धोनी को इस उम्र में कौन समझाए। वे तो खेल कूदकर ही नवाब बने हैं।
एक अच्छा आदमी बनने के लिए शिक्षा दीक्षा ज़रूरी है। जिन बच्चों में अच्छे संस्कार होते हैं, वे अच्छे इंसान बनते हैं और बुरे संस्कार वाले बुरे आदमी। हमारे संस्कार देखो, हम कितने अच्छे आदमी है। अब और कितना अच्छा बनें। अच्छा होना ज़रूरी नहीं, अच्छा बनना ज़रूरी है। वैसे भी आजकल ज़्यादा अच्छाई का ज़माना नहीं है भाई साहब। ।
केवल कबीर जैसे संत ही यह कहते पाए गए हैं, बुरा जो देखन मैं चला, मुझसे बुरा न कोय। और हमारा आलम यह है कि अच्छा जो देखन मैं चला, मुझसे भला न कोय। पर्सनालिटी डेवलपमेंट वाले ने समझाया है, मन में हमेशा यह कहते रहो, I am the best. I am the best. मुझसे अच्छा कौन है।
अपने आसपास देखिए, स्कूल कॉलेज, मंदिर मस्जिद, गुरुद्वारा, संत महात्मा, अदालत, पुलिस, कानून, कथा कीर्तन, समाज सेवी और राजनेता, प्रवचनकार, सभी हमें अच्छा बनाने पर तुले हैं, क्या हम इतने बुरे है। हम तो अच्छे हैं, फिर क्यों ये हमारे पीछे पड़े है। जो सबक बचपन में मास्टरजी देते थे, वह आज भी याद है। सदा सत्य का आचरण करो। कभी झूठ मत बोलो, चोरी मत करो, एक अच्छे इंसान बनो। और लो जी, हम एक अच्छे इंसान बन गए। ।
आज जिसे हम बायो डाटा अथवा रिज्यूम कहते हैं, पहले नौकरियों के लिए टेस्टीमोनियल्स लगते थे। मार्क शीट और डिग्री की कॉपी और अन्य उपलब्धियों के साथ एक चरित्र प्रमाण – पत्र भी नत्थी किया जाता था। जिसका मजमून कुछ इस प्रकार का होता था। मैं इन्हें पिछले दस वर्षों से जानता हूं। आप एक मेहनती और ईमानदार इंसान हैं। और अंत में शुद्ध हिन्दी में ; He bears a good moral character.
क्या बनने में और होने में कोई फ़र्क होता है। क्या हम एक अच्छे इंसान नहीं, केवल बनते हैं इसका जवाब सिर्फ हमारे पास है। इस संसार में ऐसी कोई कसौटी नहीं, जो आपको अच्छा या बुरा इंसान साबित कर सके। बस अपने अंदर झांकिए, आपको जवाब मिल जाएगा। जब आप पर झूठे आरोप लगते हैं, आप लोगों की निगाह में बुरे साबित हो जाते हैं। कुछ अपराधी भी अदालत द्वारा निर्दोष बताए जाने पर छूट जाते हैं। किसी के चेहरे पर कुछ लिखा नहीं। फिर भी किसी का नाम है, और कोई बदनाम है।
अगर आप अच्छे हैं, तो बनने की कोशिश मत कीजिए। अगर नहीं हैं तो बन जाइए। बुरा इंसान किसी को अच्छा नहीं लगता। अब इस उम्र में तो सुधरने से रहे। साफ सुथरे कपड़े पहनिए, लोगों से प्रेम से व्यवहार कीजिए। लेकिन अगर कोई आपके साथ बेईमानी करे, आपको धोखा दे, आपकी बदनामी करे, तो उसे सबक सिखाइए। ज़्यादा अच्छा बनने की भी ज़रूरत नहीं है। तुमने मेरी अच्छाई ही देखी है, अब मेरा असली रूप भी देख लो।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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