श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चैन की नींद…“।)
अभी अभी # 228 ⇒ चैन की नींद… श्री प्रदीप शर्मा
कुछ लोग रात भर जागते रहते हैं, सिर्फ चैन की नींद की तलाश में, क्योंकि हर तलाश के लिए जागना जरूरी होता है। उनकी तलाश करवटें बदलने से शुरू होती है जो बिस्तर की सलवटें मिटाने, पंखे और एसी की स्पीड कम ज्यादा करने और खिड़की खोलने बंद करने के बाद भी खत्म नहीं होती। जब रात को नींद नहीं आती, तो न सुबह होती है, न शाम होती है, बस रात यूं ही तमाम होती रहती है।
नींद एक ऐसी परी है, जो कहीं आती नहीं, कहीं जाती नहीं, फिर भी कभी नजर नहीं आती। आती है तो दबे पांव आती है, और जब उड़ती है तो एक पंछी की तरह। शायद इसीलिए इसे निद्रा देवी भी कहा गया है। एक वत्सला मां की तरह, चुपचाप सिर पर हाथ धर देती है, तो थका हुआ इंसान उसकी गोद में अपना सर रखकर सो जाता है। नींद में कैसी भूख प्यास, गरीब अमीर, अच्छा बुरा, पशु पक्षी, मानव, दैत्य। मां की तरह नींद भी निष्ठुर नहीं होती, यहां कोई पापी, पुण्यात्मा नहीं, किसी को कोई वीआईपी ट्रीटमेंट नहीं। ।
हमेशा जागते रहने के लिए सोना भी उतना ही जरूरी है। इनवर्टर की तरह हमारे मस्तिष्क में भी एक बूस्टर लगा है, जो शरीर और मन की थकान का हिसाब रखता है, तन और मन को केवल भोजन की ही नहीं, एक अच्छी नींद की भी जरूरत होती है। भूखे पेट तो भजन भी नहीं होता। जब कि कुछ लोगों का तो भोजन के बाद खर्राटा ही भजन होता है।
जो जागेगा सो पाएगा, जो सोएगा सो, खोएगा ! क्या यह सोते शेर को जगाना नहीं ? बस, एकाएक इंसान जाग उठता है, वह खुद ही नहीं जागता, दुनिया को भी जगाना शुरू कर देता है।
जागो सोने वालों, सुनो मेरी जुबानी ;
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत …
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ तो कह भी गए हैं, जो चाहते हो, पा लो। वर्ना जो पाया है, उसे ही चाहने लगोगे। चाह में कभी आह है तो कभी वाह ! रात दिन एक करके ही कुछ हासिल किया जाता है। प्रयत्न और पुरुषार्थ से बड़ा कोई मोटिवेशनल स्पीच नहीं। सफलता, उपाधि, उपलब्धि, और यश कीर्ति, इंसान फूला नहीं समाता। चंद लम्हों की क्षणिक नींद कब इन सुखों के आगे पानी भरने लग गई, पता ही नहीं चला। बस सफलता और सम्मान ओढ़िए बिछाइए, लेकिन नींद कहां चली गई, कुछ पता ही नहीं चला।
नींद से बड़ा कोई सौदेबाज नहीं। आप जब तक रात्रि काल में अपना सब कुछ निद्रा देवी को अर्पित नहीं कर देते, वह आपको अपने आगोश में नहीं आने देती।
चिंता, फिक्र, राग द्वेष, लाभ हानि और मान अपमान का गट्ठर सर पर उठाए इंसान के द्वार नींद कभी नहीं फटकती। खाते रहें नींद की गोली, बदलते रहें करवटें रात भर। ।
ईश्वर मिलेगा जब मिलेगा, फिलहाल तो अगर आपको चैन की नींद अगर मिल रही है, तो किसी कीमत पर उसे ना ठुकराएं। नींद के ख्वाब नहीं देखे जाते, नींद में ही ख्वाब देखे जाते हैं।
ठंड का मौसम है, अगर रात में बिस्तर है, रजाई है, तो ;
किस किस को याद कीजिए
किस किस को रोइए।
आराम बड़ी चीज है
मुंह ढांककर सोइए। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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