श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गौ सेवा और श्वान प्रेम ।)

?अभी अभी # 243 ⇒ गौ सेवा और श्वान प्रेम… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं।

आदमी हूं, आदमी से प्यार करता हूं।।

इंसान से इंसान का प्रेम तो भाईचारा कहलाता है, यह अपराध कहां हुआ ! लेकिन हां, फिर भी यह एक सीमित दायरा और संकुचित सोच अवश्य है। जो सच्चा इंसान होता है, वह तो प्राणी मात्र से प्रेम करता है। प्राणियों में पशु पक्षी तो आते ही हैं, जिनका चित्त शुद्ध होता है, उन्हें तो कण कण में भगवान नजर आते हैं। मुझमें राम, तुझमें राम, रोम रोम में राम वाली अवस्था होती है यह।

हमने तो वे दिन भी देखे हैं, जब गौ माता और श्वान साथ साथ, गली गली, चौराहों चौराहों पर घूमते नजर आते थे। तब घर घर, द्वार द्वार गौ माता नजर आ जाती थी। तब भले ही मुफ्त राशन नहीं था, लेकिन फिर भी पहली रोटी गाय की ही निकाली जाती थी। लेकिन हो सकता है, यह केवल सिक्के का एक ही पहलू हो, उसकी वास्तविक स्थिति एक आवारा पशु से बेहतर नहीं थी।।

घूरे की तरह गौ माता के दिन भी फिरे, और उसे ससम्मान गौ शालाओं में प्रतिष्ठित किया गया। माता पिता भले ही घरों से वृद्धाश्रम में पहुंच गए हों, हमारी गौ माता आज गौ शालाओं में सुरक्षित है।

लेकिन एक बेचारे श्वान की ऐसी तकदीर कहां। वह तो कल भी सड़क पर ही था, और आज भी सड़क पर ही है।

लेकिन एक गाय और श्वान में एक मूलभूत अंतर है। हमें गाय तो देसी चाहिए, लेकिन अगर श्वान विदेशी नस्ल का हो, तो उसके लिए हमारे घर के द्वार खुले हैं। यानी गऊ माता के लिए अगर गौ शाला तो श्वान महाशय के लिए कार बंगला सब कुछ। बड़े भाग श्वान तन पाया साहब की बीवी, बेबी मन भाया।।

साहिर का पैसा और प्यार बहुत घिसा हुआ जुमला हो गया। आज पुण्य और प्रेम का जमाना है। पैसे को पुण्य में लगाओ और प्रेम की गंगा बहाओ। अब गौ सेवा के लिए हम आलीशान बंगले में गाय तो नहीं बांध सकते न, वहां तो एक बढ़िया विदेशी नस्ल का श्वान ही शोभा देता है। गऊ तो हमारी माता है, हाल ही में हमने एक विशाल गौ शाला के लिए एक अच्छी मोटी रकम अर्पित कर पुण्य कमाया है, जिसमें गौ माता के चारे और देखभाल की व्यवस्था भी शामिल है। हर सप्ताह सपरिवार हम गौ शाला जाते हैं, गऊ सेवा करते हैं, उसे अपने हाथों से चारा खिलाते हैं, उसी प्रेम से जिस तरह घर में डेज़ी को दूध रोटी खिलाते हैं। मत पूछिए घर में डेज़ी कौन है और डॉली कौन।

क्या धरती और क्या आकाश, सबको प्यार की प्यास। दुनिया में पैसा ही सब कुछ नहीं है। आज पुण्य कमाया जाता है और प्यार लुटाया जाता है। हमें इस वैतरणी से गऊ माता ही पार लगाएगी, इसलिए अगर आप सनातनी हैं तो जितना बने गौ सेवा करें। आज के 2 और 3 बेडरूम किचेन के जमाने में गाय पालना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। अपनी हैसियत के अनुसार गो सेवा, गो दान और गौ रक्षा का संकल्प ही श्रेयस्कर है।।

विदेशी नस्ल के श्वान के भाग तो काग के भाग से कम नहीं, लेकिन सड़कों पर जो आवारा कुत्ते हैं, नजर उन पर भी कुछ डालो, अरे ओ पैसा, पुण्य कमाने वालों और प्यार लुटाने वालों ! हम नहीं चाहते, इस संसार में कोई भी प्राणी कुत्ते की मौत मरे। प्राणियों में प्रेम हो, धर्म की विजय हो, विश्व का कल्याण हो। सनातन धर्म की जय हो। ओम् तीन बार शांति ..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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