श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मुॅंह पर तारीफ…“।)
अभी अभी # 245 ⇒ मुॅंह पर तारीफ… श्री प्रदीप शर्मा
मुॅंह पर तारीफ, पीठ पीछे बुराई, इसे ही तो व्यवहार कुशलता कहते हैं मेरे भाई। औपचारिकता जितनी शालीन और संतुलित होती है, अनौपचारिकता और अंतरंगता उतनी ही विपरीत और खुला खेल फर्रूखाबादी।
सभ्यता और शालीनता ही तो हमारी सामाजिक पहचान है। निंदा स्तुति और राग द्वेष सज्जनों, विद्वानों और भद्र व्यक्तियों को शोभा नहीं देते। व्यक्ति जितना विनम्र और संस्कारी होगा, वह उतना ही एक फलों से लदे हुए वृक्ष की तरह सदा झुका हुआ, सदा मुस्कुराता हुआ, सबका अभिवादन स्वीकार करता हुआ नजर आएगा।।
यश, कीर्ति और सफलता हर व्यक्ति को व्यवहार कुशल बना ही देती है। क्षेत्र साहित्य का हो अथवा राजनीति का, सामाजिक हो अथवा धार्मिक, परस्पर प्रतिद्वंद्विता और गला काट स्पर्धा कहां नहीं। यहां अगर कुछ अगर अपने साथ चलते हैं तो कुछ विपरीत भी। सबको साथ लेकर चलने में ही समझदारी होती है, इसलिए सार सार को ग्रहण किया जाता है और थोथा उड़ा दिया जाता है।
दूर के ढोल कहां नहीं होते ! लेकिन जब उत्सव होता है, खुशी का मौका होता है, इन्हें पैसे देकर करीब बुलाया जाता है।
मजबूरी में तो साड़ू और फूफा को भी बुलाना पड़ता है। सभी नाचते हैं, नचाते हैं, खुशियां मनाते हैं। खेल खतम, पैसा हजम। दूर के ढोल सुहाने।।
हमें वैसे गले मिलते किसी से डर नहीं लगता, लेकिन पीठ पीछे बुराई करने वाले कहां बाज आते हैं, ऐसे मौके पर ! देखना संभलकर रहना, आस्तीन का सांप है। यह अलग बात है, कल वे स्वयं, उसकी ही बांहों में बाहें डालकर घूम रहे थे।
योग की तरह राजनीति में भी एक आसन है, जिसे विपरीतकरणी कहते हैं। वैसे भी राजनीति कोई बच्चों का खेल तो है नहीं।
यहां स्वार्थ के लिए अगर दोस्ती की जाती है तो स्वार्थ और मतलब के लिए दुश्मन भी पैदा किए जाते हैं। बाहरी धरातल पर सांप नेवले की तरह लड़ने वाले ये गिरगिट, कब रंग बदल लें, कहना मुश्किल है। घड़ियाली और मगरमच्छ के आंसू देखना हो, तो कभी भूलकर भी चिड़ियाघर मत चले जाना। राजनीति के अजायबघर में सभी जहरीले जंतु नजर आ जाएंगे। वैसे भी अगर बिच्छू सांप को काटेगा, तो एक तरह से जहर ही तो जहर को काटेगा।।
समझदार को कहते हैं, इशारा ही काफी होता है, साहित्य हो अथवा राजनीति, समझने वाले तो खैर इशारा समझ जाते हैं, फिर भी सच है दुनिया वालों, मुंह पर तारीफ को हम अनाड़ी तो सच ही मान लेते हैं।
ईश्वर हमें पीठ पीछे बुराई करने वालों से बचाए। हमारे लिए दूर के ढोल सुहाने ही हों। बदलते रहें गिरगिट अपना रंग, ठगते रहें हमें राजनीति के मन लुभावन नारे, बस हम किसी को ना ठगें। हमें तो हमेशा ठगा ही जाना है, क्योंकि माया महा ठगनी हम जानी।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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