श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “D A U D ( दौड़)…“।)
अभी अभी # 250 ⇒ D A U D ( दौड़)… श्री प्रदीप शर्मा
वर्ष १९९७ में राम गोपाल वर्मा की एक फिल्म आई थी जिसका शीर्षक अंग्रेजी में DAUD था, लगा, फिल्म दाऊद इब्राहिम पर केंद्रित होगी। फिल्म आकर चली भी गई, बाद में कहीं पढ़ने में आया, फिल्म का नाम हिंदी में दौड़ था। हिंदी दिवस पर खयाल आया, दौड़ को वे लिखते भी कैसे, अगर DAUR लिखते, तो दौर भी हो सकता था। उदाहरण स्वरूप दिलीप कुमार की फिल्म नया दौर NAYA DAUR को ही ले लीजिए। इसी अंधी दौड़ में योग, yoga, राम, Rama और विस्तार Vistara हो गया है।
दुनिया आज दौड़ नहीं, भाग रही है, बचपन से जवानी, जवानी से बुढ़ापा, स्कूल, दफ्तर, शादी ब्याह, जन्म मरण, की भागमभाग के बाद एक उम्र ऐसी आ जाती है जब सुबह शाम टहलने चले जाते हैं आसपास के बगीचों में, कोई पूछता है, तो यही कहने में आता है, अब कहां आना और कहां जाना।
इंसान की दौड़ मस्जिद तक हो या मंदिर तक, हर व्यक्ति जीवन में गति भी चाहता है और ठहराव भी। कहीं ज़िन्दगी में गति है, तो कहीं ठहराव। मिल्खा सिंह और पी टी उषा ने तो दौड़कर ही न केवल अपनी मंज़िल हासिल की, अपितु देश का गौरव भी बढ़ाया। एक तरफ अंधी दौड़ है। दौड़ सके तो दौड़।
दौड़ प्रतिस्पर्धा भी हो सकती है और मैराथन भी। लेकिन जब मैराथन भी प्रतियोगिता हो जाए तब साथ साथ नहीं दौड़ा जाता। आप साथ साथ चल तो सकते हो, लेकिन साथ साथ मंज़िल नहीं पा सकते। कहीं मंज़िल दौड़ने पर भी नसीब नहीं होती और कहीं मंज़िल खुद दौड़ी चली आती है। कहीं अजगर चाकरी नहीं करता तो कहीं, न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।
एक सच्चे भक्त और आशिक में कोई फर्क नहीं होता। उसकी दौड़ उसके दिल तक ही सीमित होती है, वह नगरी नगरी द्वारे द्वारे नहीं भटकता। वह कहता है ;
ओ महबूबा,
तेरे दिल के पास ही है मेरी मंज़िले मक्सूद।
वो कौन सी महफ़िल है जहां
तू नहीं मौजूद।।
लेकिन फिर भी जब तक घट घट व्यापक हमारे आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम राम, असली अयोध्या में विराजमान नहीं हो जाते, हमारी दौड़ पूरी नहीं होती। फिर हमारी भी दौड़ अयोध्या तक ही सीमित रहेगी। और अगर हमारे रोम रोम में राम है तो यही राम मंदिर रोम में भी बनेगा और पेरिस में भी। भारत किसी दौड़ में पीछे नहीं।
जिस भक्त की लाज बचाने भगवान दौड़े चले जाते हैं, क्या वह भक्त अपने भगवान के लिए थोड़ी भी दौड़ नहीं लगा सकता।
फिर भी होते हैं कुछ मेरे जैसे आलसी, जो कहते हैं, बस ज़रा गर्दन झुकाई, देख ली तस्वीरे यार।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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