श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “|| तिजारत ||।)

?अभी अभी # 259 || तिजारत || ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कल रेडियो पर एक गीत सुना, बस इतना ही याद रहा, मोहब्बत अब तिजारत बन गई है, तिजारत अब मोहब्बत बन गई है। हिंदी तो खैर हमारी ठीकठाक है, लेकिन उर्दू और इंग्लिश में हमारा हाथ बहुत तंग है। एक भारतीय होकर हम ग्रीक और लेटिन की बात क्यूं करें, लेकिन उर्दू और इंग्लिश हमारे लिए तमिळ और मळयालम से कम भी नहीं। जिसमें उर्दू तो बिल्कुल काला अक्षर भैंस बराबर है। आखिर मातृभाषा, mother tongue और मादरे जुबां में अंतर तो होता ही है। यह अलग बात है कि हमारी मातृ और इनकी मदर एक ही है।

कई ऐसे उर्दू शब्द हैं, जिनका हम अर्थ नहीं जानते। तिजारत भी उनमें से ही एक है। हमें पहले लगा, इबादत को ही तिजारत कहते होंगे, लेकिन हम गलत निकले। इनकी तिजारत तो हमारा व्यापार, व्यवसाय निकली। यानी राजनीति और धर्म की तरह आजकल मोहब्बत भी व्यवसाय हो चली है।।

लेकिन मन ही मन हम खुश भी हुए। आखिर क्या अंतर है, मोहब्बत, इबादत, राजनीति और धर्म में ! सभी तो प्रेम के सौदे हैं।

आपने सुना नहीं ;

ये तो प्रेम की बात है उधो

बंदगी तेरे बस की नहीं है।

यहां सर दे के होते हैं सौदे

आशिकी इतनी सस्ती नहीं है।।

और उधर हमारे दिलीप साहब, जिंदाबाद जिंदाबाद, ऐ मोहब्बत जिन्दाबाद के नारे लगा रहे हैं। और गीता में हमारे श्रीकृष्ण कह रहे हैं, सभी धर्मों को त्याग, अर्जुन, मेरी शरण में आ।

उधर मोहब्बत तिजारत की बात हो रही है, और इधर विविध भारती पर भजन चल रहा है ;

राम नाम अति मीठा है

कोई गा के देख ले।

आ जाते हैं राम,

बुला के देख ले।।

आजकल मार्केटिंग का जमाना है। बिना प्रचार के तो कछुआ छाप अगरबत्ती भी नहीं बिकती। यह भी सच है कि हर सौदा सच्चा नहीं होता लेकिन हमें भी ललिता जी की तरह सर्फ वाली समझदारी से ही काम लेना चाहिए।।

प्रचार प्रसार के सच से हम मुंह नहीं मोड़ सकते। यह सच है कि मोहब्बत की तरह अब इबादत भी तिजारत हो गई है। सोचिए, अगर आज इतना सोशल मीडिया, डिजिटल नेटवर्क, संचार के अत्याधुनिक साधन नहीं होते, तो क्या रामकाज इतना आसान होता।

आज घर बैठे हम नेटवर्क के जरिए अयोध्या पहुंच रहे हैं, यह सब भी रामजी की ही कृपा है। आज हमारे रामदूतों का नेटवर्क भी इस रामकाज में पीछे नहीं। जब घर घर पीले चावल पहुंच चुके हैं, तो हर घर और मंदिर में दीप भी प्रज्वलित किए जाएंगे। राम आएंगे, आएंगे, आएंगे।।

ना तिजारत बुरी, ना मोहब्बत बुरी। जब सियासत और इबादत एक हो जाती है, तब ही रामराज्य की स्थापना होती है। कामकाज और रामराज जब साथ साथ चलते हैं, तब ही धर्म की स्थापना होती है, और ग्लोबल नेटवर्क के जरिए, रोम रोम में रामलला विराजमान होते हैं।

जोत से जोत जलाना ही तिजारत है, इबादत है, अपने इष्ट प्रभु राम के प्रति सच्चा प्रेम और समर्पण है। रामजी की निकली सवारी,

राम जी की लीला है न्यारी।

राम लक्ष्मण जानकी,

जय बोलो हनुमान की।

जय श्री राम।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments