श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य – “समाजवादी इत्र”।)
नशे से इंसान बहकता है, और इत्र से महकता है ।धर्म और राजनीति दोनों नशे हैं, छलके तेरी बातों से, ज्ञान और ज्यादा, कसमों, वादों का व्योपार और ज्यादा ।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और सबै भूमि गोपाल की है । सबको बराबर बराबर उनका हक मिले, बस यही समाजवाद है । समाजवाद में घोड़ा गधा एक ही चाल चलता है, और एक ही भाव बिकता भी है ।।
मेरा शहर एक समय पूरा समाजवादी हो गया था ।
देश में तब नेहरू के खिलाफ सिर्फ एक ही आवाज थी, समाजवादी लोहिया की । जब वे कांग्रेस को नहीं हटा सके तो उन्होंने अंग्रेजी हटाओ का नारा दे दिया । सभी व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के अंग्रेजी विज्ञापन पत्थरों और तोड़फोड़ के शिकार हुए । लेकिन अंग्रेजी टस से मस नहीं हुई ।
लोहिया कांग्रेस हटाने की बात करते थे और कांग्रेस गरीबी हटाने की । समाजवाद से आचार्य से ओशो बने भगवान रजनीश को भी शिकायत थी । कुएं में भांग की तरह, भोग से समाधि लगवाने वाले ओशो ने भी लोगों को समाजवाद से सावधान रहने का मंत्र दिया । विदेशी घड़ियों और आयातित कारों के शौकीन आचार्य रजनीश आज भी अपने भक्तों में वही स्थान रखते हैं, जो हमारे प्रधान सेवक देश के प्यारे भाइयों और बहनों के दिल में ।।
तब इंदौर का राजवाड़ा, राजवाड़ा जनता चौक कहलाता था । भाइयों और बहनों के लिए यहां अक्सर, शाम को ठीक आठ बजे, आम सभाएं हुआ करती थी, जिनमें अटलबिहारी, और जगन्नाथ राव जोशी के अलावा कभी जॉर्ज तो कभी मधु लिमये और कभी लाड़ली मोहन निगम जैसे समाजवादी नेताओं के भाषण होते थे । जनता जनार्दन इनके भाषणों से तृप्त होकर ही घर जाती थी ।
तब लोगों ने न तो मोदी जी का नाम सुना था, और ना ही किसी चाय वाले का । राजवाड़े के पास ही एक चाय की दुकान थी जहां की समाजवादी, जनवादी, क्रांतिवादी और जनता चाय मशहूर थी ।हमारे देश में जितनी क्रांति चाय और कॉफी के प्याले में हुई हैं, उतनी अगर यथार्थ में हो जाती, तो, मत पूछिए, देश अब तक कहां से कहां पहुंच जाता।।
गुलाब का फूल हो, या कन्नौज के खस के इत्र की एक शीशी, समाजवाद का इससे बेहतर आज भी कोई विकल्प नहीं । बारातियों को अगवानी के वक्त खिलते गुलाब की कली पेश कर दी गई और सबके कंधों पर इत्र की वर्षा । मैरिज गार्डन के सजे धजे वेटर्स हाथों में भुने हुए काजू बादाम से आपका स्वागत करते हुए । एक बार अंदर प्रवेश कर जाएं, फिर कोई नहीं पूछने वाला । मन्नू भंडारी का महाभोज हो अथवा शादियों का गिद्ध भोज ।
वैसे भी पिछले दो वर्षों से हमने लोगों से गले मिलना ही छोड़ दिया है, इत्रपान का स्थान हैण्ड वॉश और सैनिटाइजर ने ले ही लिया है । बाकी भी इसी तरह, गुजर जाए तो अच्छा ।।
जो खुशबू समाज में खुशबू और खुशियां बांटती हो, जो ऊंचे लोगों की ऊंची पसंद हो, यह छापा उनकी खुशियों पर पड़ रहा है । क्या देश बदल रहा है, या कहीं चुनाव हो रहे हैं । शीघ्र ही मिल जुलकर देखेंगे तमाशा हम लोग ।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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