श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हृदय और आत्मा…“।)
अभी अभी # 273 ⇒ हृदय और आत्मा… श्री प्रदीप शर्मा
Heart and Soul
यह तो सभी जानते हैं कि सभी प्राणियों में एक आत्मा होती है, जिसमें परमात्मा का वास होता है। हमारा क्या है, हम तो जो नहीं जानते, उसको भी मान लेते हैं। अच्छी बातों पर समझदार लोग व्यर्थ बहस और तर्क वितर्क नहीं किया करते।
लेकिन हमारी आत्मा तो यह कहती है भाई जो आपको स्पष्ट दिखाई दे रहा है, पहले उसको मानो और हमारा हृदय भी इससे सहमत है। इसलिए सबसे पहले हम रूह की नहीं, दिल की बात करेंगे। दिल और हृदय दोनों में कोई खास अंतर नहीं।
दिल में हमारे प्यार और मोहब्बत होती है और हृदय में प्रभु के लिए प्रेम। जो दिल विल और प्यार व्यार में विश्वास नहीं करते, वे फिर भी अपने हृदय में मौजूद प्रेम से इंकार नहीं कर सकते।।
धड़का तो होगा दिल, किया जब तुमने होगा प्यार। आप प्यार करें अथवा ना करें, दिल का तो काम ही धड़कना है, जिससे यह साबित होता है, कि दिल अथवा हृदय का हमारे शरीर में अस्तित्व है।
दिल के तो सौदे भी होते हैं। दिल टूटता भी है और दुखता भी है। दिल के मरीज भी होते हैं और दिल का इलाज भी होता है। दिल के डॉक्टर को ह्रदय रोग विशेषज्ञ, heart specialist अथवा कार्डियोलॉजिस्ट भी कहते हैं।।
आत्मा हमारे शरीर में विराजमान है, लेकिन दिखाई नहीं देती। जो अत्याधुनिक मशीनें शरीर की सूक्ष्म से सूक्ष्मतम बीमारियों का पता लगा लेती है, वह एक आत्मा को नहीं ढूंढ निकाल सकती।
आत्मा विज्ञान का नहीं, परा विज्ञान का विषय है।
लेकिन विज्ञान से भी सूक्ष्म हमारी चेतना है जो हर पल हमारी आत्मा को अपने अंदर ही महसूस करती है। हमारी आत्मा जानती है, हम गलतबयानी नहीं कर रहे।
हमारा हृदय कितना भी विशाल हो, इस स्वार्थी जगत में घात और प्रतिघात से कौन बच पाया है। इधर हृदयाघात हुआ और उधर एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी अथवा बायपास सर्जरी। लेकिन आत्मा के साथ ऐसा कुछ नहीं होता। जो नजर ही नहीं आ रही, उसकी कैसी चीर फाड़। नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि।।
लेकिन जहां चित्त शुद्ध होता है, वहां हृदय में रोग और विकार का नहीं, परमात्मा का वास होता है। हमने भी अपने हृदय में किसी की मूरत बसा रखी है, बस गर्दन झुकाते हैं और देख लेते हैं। लेकिन हमारी स्थिति फिर भी राम दूत हनुमान के समान नहीं।
लंका विजय के पश्चात् जब राम, लखन और माता सीता अयोध्या पधारे तो सीताजी ने प्रसन्न होकर हनुमान जी को मोतियों का हार भेंट किया। कण कण में अपने आराध्य प्रभु श्रीराम के दर्शन करने वाले बजरंग बली ने मोतियों के हार को भी उलट पलट कर और तोड़ मरोड़कर अपने आराध्य के दर्शन करना चाहे लेकिन जब सफल नहीं हुए, तो उन्होंने माला फेंक दी। जिसमें मेरे प्रभु श्रीराम नहीं, वह वस्तु मेरे किस काम की।।
आगे की घटना सभी जानते हैं। कैसी ओपन हार्ट सर्जरी, केसरी नंदन ने तो हृदय चीर कर हृदय में विराजमान अपने आराध्य श्रीराम के सबको दर्शन करा दिए। यानी हमारे हृदय में जो आत्मा विराजमान है, वही हमारे इष्ट हैं, और वही परमात्मा हैं। हाथ कंगन को आरसी क्या।
बस कोमल हृदय हो, चित्त शुद्ध हो, मन विकार मुक्त हो, तब ही आत्मा की प्रतीति संभव है। जब कभी जब मन अधिक व्यथित होता है, तब आत्मा को भी कष्ट होता है। और तब ही तो ईश्वर को पुकारा जाता है ;
जरा सामने तो आओ छलिये
छुप छुप छलने में क्या राज है।
यूं छुप ना सकेगा परमात्मा
मेरी आत्मा की ये आवाज है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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