श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “वाद विवाद…“।)
अभी अभी # 289 ⇒ वाद विवाद… श्री प्रदीप शर्मा
Debate
वाद विवाद को आप बहस भी कह सकते हैं। किसी भी विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में जब दलील दी जाती है और तर्क द्वारा उसकी पुष्टि की जाती है तो उसे वाद विवाद प्रतियोगिता अथवा डिबेट कंपटीशन कहते हैं। स्कूल कॉलेज के दिनों में कई अच्छे वक्ता बाद में जीवन में सफल अधिवक्ता और नेता सिद्ध हुए हैं।
वैसे तो वाद की जड़ में ही विवाद भी मौजूद है। जहां पक्ष है, वहीं विपक्ष भी है। जब दो पक्षों के बीच विवाद बढ़ जाता है तो अदालत में वाद प्रस्तुत किया जाता है, एक वादी कहलाता है तो दूसरा प्रतिवादी। जीत तो हमेशा सत्य की ही होती है।।
वाद विवाद प्रतियोगिता में सत्य के दो पहलू होते हैं। विषय भले ही एक हो, लेकिन पलड़ा दोनों पक्षों का भारी होता है। विजेता भी दो ही घोषित होते हैं और सत्य को दोनों में आपस में बांट दिया जाता है।
डिबेट के विषय भी तब कैसे होते थे। संयुक्त परिवार के गुण दोष, लव मैरिज और अरेंज्ड मैरेज और और सह शिक्षा के दुष्प्रभाव। गर्ल्स कॉलेज में एक पुरुष छात्र वक्ता, प्रेम विवाह के खिलाफ इतना गर्मजोशी से तर्क और दलीलें प्रस्तुत करता है कि ना केवल वह विजेता घोषित होता है, छात्राओं की तालियों के बीच, कोई अनजान लड़की उसे दिल दे बैठती है और कालांतर में दोनों प्रेम विवाह के सूत्र में बंध जाते हैं।।
समय के साथ वाद विवाद ने परिचर्चा और परिसंवाद का रूप ले लिया। ज्वलंत समस्याओं पर विचार विमर्श और सार्थक संवाद को अधिक महत्व दिया जाने लगा। संसद में भी विपक्ष द्वारा सत्ता पक्ष पर हमले होते थे। बेचारे सत्य की स्थिति भी डांवाडोल जैसी ही हो जाती थी। सत्य समझदार है, लोकतंत्र में वह भी हमेशा बहुमत के साथ ही चलता नजर आया है।
जब किसी वाद को लेकर विवाद खड़ा हो जाता है, तो सत्य बड़ा परेशान हो जाता है। कोई बुलंद इमारत जब रातों रात विवादित ढांचे में परिवर्तित हो जाती है, तो सत्य और भी सुंदर और शिव हो जाता है और सत्य की ही विजय होती है, और मंदिर भी वहीं बनाया जाता है।।
एक बार अगर सत्य की विजय हो गई तो फिर विवाद अपने पांव नहीं जमा पाता। संसद में भी सत्य का ही बहुमत होता है और विपक्ष विवादित हो जाता है। अब ऊंट पहाड़ के नीचे आ जाता है और सत्ता पक्ष विवादित विपक्ष पर हमला बोल देता है।
तर्क और बुद्धि के ऊपर की मंजिल को विवेक कहते हैं। अध्यात्म की भाषा में इसे शरणागति कहते हैं। राजनीति में भी जब विपक्ष की दुर्गति होती है, तो वह सब ओर से निराश हो सत्ता के चरणों में शरणागति हो जाता है।
इसे आजकल अवसरवाद नहीं, शरणागत का भाव कहते हैं। सभी पापों से, और ईडी के छापों से, अगर तुझे मुक्त होना है प्राणी, तो सारे वाद विवादों को छोड़
तू मेरी शरण में आ ;
बह रही उल्टी गंगा।
© श्री प्रदीप शर्मा
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