श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जिंदगी के बाद भी…“।)
अभी अभी # 319 ⇒ जिंदगी के बाद भी… श्री प्रदीप शर्मा
क्या जिंदगी के साथ, सब कुछ खत्म हो जाता है, कुछ नहीं बचता ? माना कि जान है तो जहान है, जान गई तो जहान गया, तो क्या वाकई जिंदगी के बाद कुछ नहीं बचता। चलिए, मान लिया हम आए थे, तो कुछ नहीं साथ लाए थे, और जब जा रहे हैं, तब भी खाली हाथ ही जा रहे हैं, ले लो तलाशी, अब तो जान छोड़ो, अब तो जाने दो। बहुत बचा है अभी जिंदगी के बाद भी।
तुम्हारी है, तुम ही संभालो ये दुनिया। आपने हमें हमेशा इतना उलझाए रखा जिंदगी के फलसफे में, हम पल पल को जीते रहे, आपके दर्शन को मानते रहे ;
आगे भी जाने न तू
पीछे भी जाने न तू।
जो भी है, बस यही पल ….
पल पल करते, सांसें खत्म हो गईं, जो पलक सदा झपकती रहती थी, वह भी थम गई। ये जिंदगी के मेले तो कम नहीं हुए, वक्त की सुई भी चलती रही, बस सांसें ही तो थमी है।।
क्या जिंदगी के थमने से यात्रा भी खत्म हो जाती है, वह यात्रा जो अनंत है, किसने कहा जिंदगी का आखरी पड़ाव मौत है। आखिर जिंदगी ही तो थमी है, बंदगी तो चल रही है। बंदगी ना तो सांसों की मोहताज है और ना ही किसी हाड़ मांस के चोले की।
जिंदगी भर हम मंजिले मकसूद में ही उलझे रहे।
कभी साहिल, तो कभी किनारा ढूंढते रहे, और जब आखरी मंजिल सामने है, तो यह तो एक नए सफर की शुरूआत ही हुई न। अगर राही हमेशा चलता रहे, तो सफ़र कभी पूरा नहीं होता।।
सफर से थकना ही बुढ़ापा है, उम्मीद की लाठी टेक देना ही जिंदगी का आखरी मुकाम है। अगर लाठी और इरादा मजबूत है, तो फिर नया सफर शुरू। सही मंजिल और असली महबूब को अगर पाना है, तो सब कुछ जिंदगी के बाद भी है। मंजिलें अभी और हैं, जिंदगी के बाद भी।
इस लोक में जब तक रहे, अपने पराए में ही उलझे रहे। इस शरीर को ही अपना मानते रहे। बात भी सही है। न कभी आत्म दर्शन किया, न परमात्म दर्शन, तो बस फिर केवल दर्शन और प्रदर्शन ही तो बच रहा। जीवन का दर्शन जिंदगी के साथ खत्म नहीं होता, जीवात्मा का असली दर्शन तब प्रारंभ होता है जब वह परमात्मा से जुड़ता है।।
जब एक से जुड़ेंगे, तो दूसरे को तो छोड़ना ही पड़ेगा। जीव भ्रम में उलझा था, जीवन मृत्यु मायावी संसार से जुड़े हैं, पर ब्रह्म से नहीं। अपने असली लोक को परलोक कहने वाले और इस लोक को अपना कहने वाले न घर के रहेंगे न घाट के।
जो अनासक्त जीव शुरू से ही इस लोक को पराया अर्थात् परलोक मानता आया है, वही उसके असली लोक में जाने का अधिकारी है। सितारों से आगे जहान और भी हैं, बहुत कुछ है, जिंदगी के बाद भी।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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