श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “अनुत्तरित प्रश्न…“।)
अभी अभी # 332 ⇒ अनुत्तरित प्रश्न… श्री प्रदीप शर्मा
जीवन में कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं, जिनका हमारे पास कोई हल नहीं होता, कुछ ऐसे प्रश्न होते हैं, जिनका कोई जवाब नहीं होता। आप एक बार अपनी समस्या का तो फिर भी कुछ हल निकाल सकते हैं, लेकिन हर व्यक्ति की परिस्थिति ऐसी नहीं होती। वह तो बस, सवालों में उलझा रहता है।
अब गणित का सवाल ही लीजिए। कल ही एक परिचित की समस्या से रूबरू हुआ। हमारा देश बहुत बड़ा है, जो जहां है, वह अपनी अपनी परिस्थिति से जूझ रहा है। बड़े शहरों में पैसा है, शिक्षा की अच्छी सुविधा है, अच्छे स्कूल, कॉलेज, शिक्षक और कोचिंग इंस्टीट्यूट हैं। लेकिन छोटी जगहों की स्थिति इतनी अच्छी नहीं।
और शायद यही कारण है कि अच्छी शिक्षा और अच्छे भविष्य के लिए हर व्यक्ति बड़े शहरों की ओर चला आ रहा है।।
प्रतिभाएं तो गांव में भी हैं, हर व्यक्ति उठकर शहर चला आए, यह भी समस्या का हल नहीं, तो फिर समस्या क्या है। सवाल आर्थिक स्तर और बौद्धिक स्तर का भी है, उचित मार्गदर्शन का भी है।
जिस परिचित ने मुझे चिंतित कर दिया, वे इंदौर के नहीं, इंदौर के ही पास के राजगढ़ ब्यावरा के हैं, बड़ी बच्ची ने इस साल ग्यारहवीं की परीक्षा दी है।
फोन पर जब हालचाल के साथ बच्ची के रिजल्ट के बारे में पूछा, तो वे अचानक असहज हो गए। बोले इस साल रिपीट करवा रहे हैं। यानी परीक्षाफल अच्छा नहीं निकला। छोटी जगह वैसे भी कौन लड़कियों को ज्यादा पढ़ाता है।।
मैने कुरेदकर पूछा क्या बात है, क्या उसे गणित दिलवा दिया था ? वे बोले, हां यही बात है। वह ठीक से पढ़ नहीं पाई, बारहवीं में फिर परेशानी होगी, इसलिए इस साल रिपीट कर लेगी तो ठीक रहेगा। मैने शहरी ज्ञान बांटने की कोशिश की। उसे ट्यूशन करवाओ, कोचिंग करवाओ, आजकल मां बाप कहां बच्चों को पढ़ा पाते हैं। उसने आर्थिक मजबूरी नहीं, कोचिंग और ट्यूशन के अभाव की मजबूरी का जब जिक्र किया तो मुझे आश्चर्य भी हुआ, और दुख भी।
राजगढ़ ब्यावरा जिला भी है, और वहां शिक्षा का स्तर इतना गिरा हुआ तो नहीं हो सकता, कि पालक अपने बच्चों को ढंग से पढ़ा भी ना सके। आजकल सब कुछ तो ऑनलाइन चल रहा है। लेकिन अगर वास्तविकता में यह सब इतना आसान होता तो पालक अपने बच्चों का भविष्य बनाने उन्हें बड़े शहरों में और कोटा के संस्थान में पढ़ने को क्यों भेजते।।
हर मां बाप की इच्छा होती है, उसकी औलाद अच्छी शिक्षा प्राप्त करे। गणित विज्ञान अगर मजबूत हुआ, तो बच्चों की ना केवल बुनियाद मजबूत होती है, आगे कई रास्ते खुल जाते हैं। मैं यहां दूर बैठकर तो यही सोच सकता हूं, कहां बच्ची को गणित में फंसा दिया। साधारण विषय लेते, तो आसानी से पास तो हो जाती।
और मुझे अपने दिन याद आ गए। गणित से मेरा प्रेम तो आठवीं के बाद ही खत्म हो गया था, साइंस बायोलॉजी भी मुझे बी.एससी. पास नहीं करवा पाया और मैं लौटकर बुद्धू आर्ट्स में चला आया।।
जो खुद डॉक्टर, इंजीनियर नहीं बन पाया, वह क्या किसी का गणित बिठाएगा। यह गणित की समस्या अभी भी वहीं की वहीं है। बच्चों और माता पिता की इस समस्या से किसी को क्या लेना देना क्योंकि इसका हल केवल उनके पास ही है, मुझ जैसे सलाहकार, अथवा किसी स्थानीय नेता के पास नहीं।
जिसकी पढ़ने में रुचि है, उसे कोई पढ़ाने वाला नहीं। शायद यही हमारी आज की शिक्षा की कड़वी सच्चाई है। यही है गांव गांव में, और राजगढ ब्यावरा जैसे जिले में आज पढ़ाई का स्तर। ऐसे कई प्रश्न होंगे, जिनका उत्तर किसी के पास नहीं। बहुत दिनों से वह नारा भी नहीं सुना। लाड़ली बहना और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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