श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “समय और घड़ी…“।)
अभी अभी # 335 ⇒ समय और घड़ी… श्री प्रदीप शर्मा
दिन में हमें इतना भी समय नहीं होता, कि हम बार बार घड़ी देखें। हां, लेकिन रात में, नींद खुलते ही अपने आपसे प्रश्न किया जाता है, कितनी बजी? घड़ी की ओर निगाह की, और फिर चैन से सो गए। समय हमें चिंतित भी कर सकता है, और निश्चिंत भी। जो घोड़े बेचकर सोते हैं, उनका घड़ी कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
वैसे आज की घड़ियां बड़ी शांत होती है, बस टिक टिक किया करती है। उन्हें अपने आप से काम और आपको अपने काम से काम। आप जब चाहें, देख सकते हैं, कितनी बजी। आखिर घड़ी में ऐसा क्या है, जो बजता है।।
घड़ी का काम ही समय बताना है, लेकिन जिनका काम ही समय बिताना है, उनका घड़ी से क्या काम ! तीन कांटे, घड़ी ने आपस में बांटे, घंटा, मिनिट और सेकंड। हमने एक दिन रात को चौबीस घंटों में बांटा, बराबर बारह बारह घंटों में। एक समय था, जब एक दीवार घड़ी, हर घंटे में बजती रहती थी। जितनी बजी, उतने घंटे।
अंग्रेज तो समय के इतने पाबंद थे, कि उन्होंने जगह जगह घंटा घर बना रखे थे। घंटा घर में चार घड़ी, चारों में जंजीर पड़ी।
शासकीय कार्यालयों में, स्कूल कॉलेज में, और औद्योगिक संस्थानों में समय की पाबंदी होती थी। कहीं घंटी बजती थी, तो कहीं घंटा। एक समय था, जब रात में, कहीं दूर से, हमें हर घंटे में, घंटे की आवाज सुनाई देती थी, जितनी बजी, उतने घंटे। लेटे लेटे, बंद आंखों से ही पता चल जाता था, कितनी बजी।।
हमारा शहर तो कभी कपड़ा मिलों का शहर था। उधर मिल का सायरन बजा और इधर श्रमिक साइकिल पर अपना खाने का डिब्बा बांधे, मिल की ओर रवाना। पूरे शहर को जगाए रखते थे, ये मिल के सायरन। समय की पहचान बन गए थे ये सायरन, चलो सुबह के सात बज गए। हर पाली के वक्त सायरन बजा करते थे।
स्कूल की छुट्टी की घंटी पर हमारा बड़ा ध्यान रहता था। लेकिन जब सुबह अम्मा गहरी नींद से जगाती थी, चलो सात बज गए, तो बड़ा बुरा लगता था। आपको बुरा लगे अथवा भला, घड़ी को क्या, उसे तो बस बजना है।।
वह जमाने गए, जब घड़ी को भी चाबी भरनी पड़ती थी। आज समय हमारे जीवन में चाबी भर रहा है। घड़ी रुक सकती है, समय नहीं। घड़ी सिर्फ समय बताती है, आपका समय कैसा चल रहा है, यह नहीं।
कभी सुहाने पल, तो कभी मुसीबत की घड़ी।
अगर समय अच्छा तो आपके पौ बारह, और अगर समय खराब तो समझिए बारह बजी। प्रातः वेला अमृत वेला होती है, शुभ शुभ ही बोलना चाहिए। आपका आज का दिन शुभ हो। चलिए घड़ी में सुबह के पांच बज गए।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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