श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “लहरों के राजहंस…“।)
अभी अभी # 337 ⇒ लहरों के राजहंस… श्री प्रदीप शर्मा
जलाशय और हमारे मन में बहुत समानता है। जल मे भी तरंग उठती है, और हमारे मन में भी। तरंग कुछ नहीं एक तरह की मौज है, जो कभी भी लहर का रूप धारण कर लेती है। जयशंकर प्रसाद ने इसी तरंग में अपनी कृति “लहर” की रचना कर दी। हमारे मन में विचारों का प्रवाह भी लहरों के समान ही आता जाता रहता है।
समुद्र की लहर तो दिखाई भी दे जाती है, लेकिन कुछ लहरें ऐसी भी होती हैं, जिन्हें सिर्फ महसूस किया जा सकता है। कब इस उदास मन में किस खबर से हर्ष की लहर दौड़ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता।।
इस गर्मी में तो केवल दो ही लहर नजर आएगी, एक गर्म लहर जिसे हम लू कहते हैं, और दूसरी चुनावी लहर। लू लगना ठीक नहीं लेकिन अगर किसी की अच्छी तरह लू उतारना पड़े, तो वह नेक काम भी कर ही देना चाहिए। शीत लहर में लहर तो क्या, पानी भी बर्फ हो जाता है। ऐसे में केवल तरावट और गर्माहट की लहर ही काम आती है।
इस देश ने कांग्रेस की लहर भी देखी है, जनता लहर भी देखी है, और अब मोदी लहर भी देख रही है। लहर का क्या है, कब समंदर की कोई मासूम लहर सुनामी बन जाए। जो हमसे टकराएगा, उसका सूपड़ा साफ हो जाएगा।।
कुछ होते हैं लहरबाज, उन्हें लहरों पर खेलने में मजा आता है। लहरबाज़ी या लहरसवारी या तरंगक्रीडा (अंग्रेज़ी: surfing, सरफ़िंग) समुद्र की लहरों पर किया जाने वाला एक खेल है जिसमें लहरबाज़ (सरफ़र) एक फट्टे पर संतुलन बनाकर खड़े रहते हुए तट की तरफ़ आती किसी लहर पर सवारी करते हैं। लहरबाज़ों के फट्टों को ‘लहरतख़्ता’ या ‘सर्फ़बोर्ड’ (surfboard) कहा जाता है। लहरबाज़ी का आविष्कार हवाई द्वीपों के मूल आदिवासियों ने किया था और वहाँ से यह विश्वभर में फैल गया।
एक पक्षी होता है राजहंस जिसकी टांगें बहुत लंबी और पतली होती है, अपनी तीखी चोंच से वह शिकार करता है। हंसावर नहीं, खिले सरसी में पंकज”- पानी में खड़े राजहंस गुलाबी खिले हुए कमल के समान प्रतीत होते हैं। राजहंस (फ्लैमिंगो) एक शोभायमान पक्षी है।।
कोई राजहंस ही लहरों पर राज कर सकता है। छोटी बड़ी मछलियों की परवाह किए बगैर, साम, दाम, दंड, भेद ही उसका नीर, क्षीर, विवेक होता है।
केवल शीर्षक के लिए ही स्व. मोहन राकेश का आभार प्रकट किया जा सकता है। सच तो यह है कि राजनीति में सभी कौए हंस की ही चाल चलते हैं। आम आदमी बेचारा किनारे बैठा बैठा बड़ी उम्मीद से राह देख रहा है, कभी तो लहर आएगी, कभी तो लहर आएगी।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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