श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “संतन को कहां सीकरी से काम…“।)
अभी अभी # 367 ⇒ संतन को कहां सीकरी से काम… श्री प्रदीप शर्मा
एक राजकीय सत्ता होती है जिसके अधीन जनता रहती है। एक परम सत्ता होती है जिसके अधीन उसका दास संत रहता है।
संत वह होता है, जिसकी ना तो किसी से दोस्ती होती है, और ना ही किसी से बैर।
सत्ता तो फिर भी सत्ता ही होती है। राजा होता है, उसकी प्रजा होती है, राजा के मंत्री संतरी होते हैं, दरबारी होते हैं, राज ज्योतिषी होते हैं, राजवैद्य होते हैं, आचार्य होते हैं, पुरोहित और राज पुरोहित होते हैं। राजा के यश और कीर्ति की पताका चारों दिशाओं में फहराती रहती है।।
राजा कितना भी धर्मप्राण हो, उसे सत्ता का मद तो रहता ही है, किसी संत की कीर्ति जब उसके कानों तक पहुंचती है, तो वह उनका सम्मान करना चाहता है, उन्हें अपने दरबार का रत्न बनाना चाहता है। संत कुम्भनदास को जब फतेहपुर सीकरी से दरबार में हाजिर होने का हुक्म होता है, तो बेचारे संत चले तो आते हैं, लेकिन वहां भरे दरबार में यह कहने से नहीं चूकते ;
संतन को कहा सीकरी सों काम।
आवत जात पनहियाँ टूटी,
बिसरि गयो हरि नाम।।
जिनको मुख देखे दुख उपजत।
तिनको करिबे परी सलाम।।
कुभंनदास लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम …
सिर्फ कुम्भनदास ही नहीं, कबीरदास, तुलसीदास, और सूरदास का भी यही हाल था। उधर मेवाड़ की महारानी मीरा को भी ऐसा वैराग्य चढ़ा कि वह कुल की लाज मर्यादा छोड़ संतों के बीच उठने बैठने लगी।
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।।
संत महात्मा आज भी हैं, भक्त और भगवान भी हैं। आज संत ईश्वर से अधिक जन जन से जुड़े हुए हैं, उनमें जन कल्याण की भावना इतनी प्रबल है कि वे जंगल, कंदरा, और अपनी पर्ण कुटीर छोड़ ज्ञान और भक्ति की धारा को गृहस्थों की ओर मोड़ रहे हैं, उनके लिए बड़े बड़े आश्रम, मंदिर और गौ शालाओं का निर्माण कर रहे हैं। आज उन्हीं की बदौलत इस देश में धर्म ध्वजा फहरा रही है।
इस युग के कुंभ के आयोजन में भी आपको एक नहीं, असंख्य कुम्भनदास डुबकी लगाते नजर आएंगे। कोई जगतगुरु तो कोई महामंडलेश्वर। आज के संत पहले अमृतपान करते हैं, और फिर अपने अमृत वचनों से भक्तों को रसपान करवाते भी हैं।।
परम सत्ता के ही निर्देश से ऐसे परम संत कभी स्वाभिमान यात्राओं से धर्म का बिगुल बजाते हैं तो कभी रथ यात्रा निकालते हैं, भ्रष्ट सत्ता तंत्र का अंत करते हैं, और देश को सनातन धर्म की ओर अग्रसर करते हैं।।
विदेशी कारों और हवाई जहाजों में अब उनके पांवों को कोई कष्ट नहीं होता। पहले प्यासा कुंए के पास आता था, आजकल कुंआ ही चलकर प्यासे के पास आ रहा है। संतों की आजकल अपनी राजधानी है, उनकी अपनी सत्ता है। कोई संत मुख्यमंत्री है तो कोई संत राज्यपाल।
संत और सीकरी के बीच आज सीधी हॉटलाइन है। आज का संत अन्याय सहन करता हुआ, भक्ति भाव में डूब भजन नहीं लिखा करता, कभी उसके अंदर का परशुराम जाग उठता है, तो कभी महर्षि दुर्वासा। दो जून की रोटी के लिए वह चार जून का इंतजार भी नहीं करता। आज वह सत्ता बनाने और बदलने में सक्षम है। संत के हाथों में आज सत्ता और देश सुरक्षित है। बोलो आज के आनंद की जय ! बोलो सब संतन की जय।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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