श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “घर का जोगी जोगड़ा…“।)
अभी अभी # 401 ⇒ घर का जोगी जोगड़ा… श्री प्रदीप शर्मा
जब तक कोई गांव का व्यक्ति ग्लोबल नहीं होता, वह प्रसिद्ध नहीं हो सकता। आज का जमाना सिद्ध होने का नहीं, प्रसिद्ध होने का है। हमारे अपने अपने कूप हैं, जिन्हें हमने गांव, तहसील, जिला, शहर, महानगर और स्मार्ट सिटी नाम दिया हुआ है। इंसान डॉक्टर, प्रोफेसर, अफसर,
वैज्ञानिक, सी एम, पी एम, और महामहिम तो दुनिया के लिए होता है, उसका भी एक घर होता है, वह किसी का बेटा, और किसी का बाप और किसी का पति भी होता है। घर में न तो नेतागीरी झाड़ी जाती है और न अफसरी।
उज्जैन से कोई मुख्यमंत्री बन गया, तब हमें इतना आश्चर्य नहीं हुआ, जितना सन् १९६८ में, विक्रम विश्वविद्यालय के एक वैज्ञानिक डाॅ हरगोविंद खुराना को संयुक्त रूप से विज्ञान में नोबेल पुरस्कार मिलते वक्त हुआ। ।
तब हम कहां सन् २०१४ के नोबेल पुरस्कार विजेता, विदिशा के श्री कैलाश सत्यार्थी को जानते थे। लेकिन इनका नाम होते ही हम इन्हें जान गए। यही होता है जोगड़ा से जोगी होना।
प्रतिभाओं को कहां घर में पहचाना जाता है। कहीं कहीं तो घर से पलायन के पश्चात् ही प्रतिभा में निखार आता है तो कहीं कहीं पलायन के पश्चात् ही प्रतिभा को पहचान मिलती है। ब्रेन ड्रेन होगी कभी एक गंभीर समस्या आज इसे एक उपलब्धि माना गया है। ।
आज के जोगड़े भी बड़े चालाक हैं, जोगी बनते ही अपने गांव, शहर और देश को ही भूल जाते हैं। एक जोगड़े थे राजनारायण, जो रातों रात इंदिरा गांधी को हराकर आन गांव में सिद्ध हो गए थे। उनकी पत्नी को आज तक, कभी कोई नहीं जान पाया। वाह रे जोगी। इसी तरह मां बाप और परिवार को छोड़ कई जोगड़े आज विदेशों में नाम कमा रहे हैं। आजकल बुढ़ापे की लाठी, वैसे भी बच्चे नहीं, पैसा ही तो है, भिजवा देते हैं गांव में।
जोगड़े से जोगी बनना इतना आसान भी नहीं। कभी अपनों को छोड़ना पड़ता है, तो कभी अपनों के कंधों पर पांव रखकर आगे निकलना पड़ता है। स्वार्थ, मतलब, महत्वाकांक्षा के बिना आजकल कहां प्रतिभा में निखार आता है। व्यापम घोटाले से आज NET और NEET तक का सफर तो यही कहानी कहता नजर आता है। इन घोटालों की आड़ में गांव के बेचारे कई योग्य जोगड़े, कहीं जोगड़े ही ना रह जाए, और जो जुगाड़ और राजनीतिक प्रभाव वाले हैं, कहीं वे बाजी ना मार जाएं। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈