श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “तमाशबीन (Spectator)…“।)
अभी अभी # 402 ⇒ तमाशबीन (Spectator)… श्री प्रदीप शर्मा
हम जिसे साधारण भाषा में दर्शक कहते हैं, उसे ही अगर गाजे बाजे के साथ पेश किया जाए, तो वह तमाशबीन हो जाता है।
दूर की चीज देखने वाला उपकरण जैसे दूरबीन कहलाता है, ठीक उसी प्रकार दूर से तमाशा देखने वाला तमाशबीन कहलाता है। तमाशबीन कभी एक गंभीर दर्शक नहीं होता।
वह तो सिर्फ मनोरंजन और नाच गाने में विश्वास रखता है।
तमाशा भी देखा जाए तो एक तरह का हल्का फुल्का नाटक अथवा मनोरंजन ही है। मराठी में लोकनाट्य को तमाशा कहते हैं। रंगमंच पर संगीत और नृत्य की मिली जुली प्रस्तुति भी तमाशा ही कहलाती है।।
“तमाशा” फ़ारसी का एक उधार शब्द है, जिसने इसे अरबी से उधार लिया है, जिसका अर्थ है किसी प्रकार का शो या नाटकीय मनोरंजन। इसी तरह
तमाशागर = तमाशा करनेवाला। तमाशागाह= क्रीड़ा- स्थल। कौतुकागार। तमाशबीन = तमाशा देखनेवाला।
हम भारतीय तमाशा प्रेमी हैं। चौराहे पर दो सांडों की लड़ाई हमारे लिए तब तक तमाशा बनी रहती है, जब तक एक सांड द्वारा किसी तमाशबीन को पटक नहीं दिया जाता। जिस घर से भी पति पत्नी अथवा सास बहू के लड़ने की आवाज सुनाई देती है, पहले तो पड़ौसी दीवार में कान लगाकर सुनते हैं, लेकिन जब मामला हाथापाई और मारपीट पर आ जाता है, तो न जाने कहां से तमाशबीन घर के बाहर, बारिश बाद के केंचुए की तरह जमा हो जाते हैं।
हमारे तमाशेबाजों की एक भाषा होती है, जहां भी दो पक्षों में लड़ाई हो रही है, अपना जूता उल्टा कर दिया जाए और “उल्टा जूता चेत भवानी” मंत्र का जाप किया जाए। अगर कहीं भवानी नहीं चेतती, तो एक हारे हुए नेता की तरह, मुंह लटकाकर परास्त भाव से, वहां से पतली गली से निकल लेते हैं।।
तमाशबीन वह होता है, जो कहीं से भी तमाशा बीन निकालता है। ऐसे कई तमाशबीन आपको किसी भी नाले अथवा पुलिया के पास प्रचुर मात्रा में नजर आ जाएंगे। चार लोगों की भीड़ में हमें तमाशा नजर आने लगता है। एक जिज्ञासा, देखें क्या हो रहा है, एक राहगीर को साइकल अथवा स्कूटर रोकने को बाध्य करती है।
वह फुसफुसाहट से भांप लेता है, मामला कितना संगीन है। सबकी कल्पना में एक सांप होता है। कभी नजर आता है, कभी नहीं।
हमारे लिए सबसे बड़ा तमाशा कोई दुर्घटना है।
जहां धुंआ होगा, वहां आग भी होगी। आजकल तो गंभीर हादसों और दुर्घटनाओं को भी मोबाइल पर रेकॉर्ड कर उनका तमाशा बनाया जा रहा है। ऐसे कई टीवी पत्रकार, खोजी पत्रकारिता की आड़ में, बोरवेल में गिरे बच्चे की लाइव रेकॉर्डिंग आज तक पर प्रसारित कर देते हैं।।
जो जिंदगी कभी नाटक थी, आज तमाशा बन गई है। हर जगह सस्पेंस और रोमांच ढूंढना ही तमाशबीन होना है। यह सकारात्मकता से नकारात्मकता की तरफ बढ़ता हुआ एक खतरनाक कदम है। हमने राजनीति, पढ़ाई, साहित्य, धर्म और नैतिकता सबको तमाशा बना दिया है।
सड़कों का तमाशा आजकल घरों में भी प्रवेश कर गया है। बुद्धू बक्से का बाप यानी स्मार्ट फोन और लैपटॉप आज आपकी मुट्ठी में है। सेल्फी एक बीमारी हो गई है और सभी तमाशबीन व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के छात्र हो गए हैं। झूठ के साये में अफवाह और पाखंड पनप रहे हैं। अफसोस, तमाशा जारी है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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