श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “कड़वाहट (Bitterness)…“।)
अभी अभी # 404 ⇒ कड़वाहट (Bitterness)… श्री प्रदीप शर्मा
हमारा भारतीय दर्शन जीवन में मिठास घोलता है, कड़वाहट नहीं। दो मीठे शब्द, कुछ मीठा हो जाए। यहां अगर जन्म उत्सव है है, तो मृत्यु भी उत्सव।
जन्म पर बधाई गीत तो विवाह के अवसर पर बैंड बाजा बारात और अंतिम विदाई भी गाजे बाजे के साथ। जन्मदिन पर केक तो तेरहवें पर भी नुक्ति सेंव, लड्डू।
परीक्षा के दिनों में मां घर से दही शक्कर खिलाकर पाठशाला भेजती थी। गर्मी के मौसम में जगह जगह मधुशालाओं में गन्ने का रस नजर आता था।
एकाएक बच्चन जी एक और ही मधुशाला लेकर आ गए, जहां हिन्दू मुस्लिम आपस में बैठकर प्यालों में कड़वा पेय का सेवन करने लगे। बस तब से ही खुशी के पल हों, या गम गलत करना हो, यह कड़वी चीज हमारे मुंह लग ही गई।।
आज जगह जगह गन्ने के रस की नहीं, शासकीय देशी और विदेशी मदिरा की मधुशालाएं लोगों के जीवन में जहर घोल रही हैं। जिस तरह लोहा लोहा को काटता है, कुछ लोगों का यह भ्रम है कि आत्मा की कड़वाहट इस कड़वी चीज से कुछ कम हो जाती है।
जैसे जैसे यह कड़वा जहर शरीर में फैलने लगा, इंसान की कड़वाहट भी बढ़ने लगी ;
कोई सागर दिल को बहलाता नहीं।
बेखुदी में भी करार आता नहीं।।
कौन सा जहर ज्यादा खतरनाक है, कड़वे नशे का जहर अथवा नफरत का जहर, इसका फैसला करना इतना आसान नहीं। उनकी जुबां तो पहले ही कड़वी थी, बेचारा करेला मुफ्त ही बदनाम हो गया।
मीठे बोलने से कोई बीमारी नहीं होती, लेकिन हां मीठा खाने से जरूर होती है, और वह भी मधुमेह ही है। कड़वी शराब से मधुमेह बढ़ता है और कड़वे पदार्थ नीम, करेला, मैथीदाना मधुमेह को कंट्रोल करते हैं।।
कौन है जो हमारे रिश्तों में कड़वाहट घोल रहा है, भाई और भाई के बीच दीवारें खड़ी हो रही हैं। जिस जुबां से कभी शहद टपकता था आज वही जबान अभद्र, अश्लील और बुरी तरह कड़वी हो गई है। बात बात पर तैश खाना और आपा खोना क्या हमारा नैतिक पतन है अथवा तामसी जीवन का असर। कहीं इसके लिए हमारी शिक्षा दीक्षा अथवा आसपास का वातावरण तो जिम्मेदार नहीं।
भौतिकता की अंधी दौड़, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में प्रेम और सद्भाव का अभाव शायद कुछ हद तक इसके लिए जिम्मेदार हो। सद्बुद्धि, आचरण की शुद्धता, संयम, विवेक और परस्पर प्रेम ही इस बढ़ती कड़वाहट को दूर कर सकता है। काश ऐसी कोई मधुशाला हो जहां ;
अरे पीयो रे
प्याला राम रस का।
राम रस का प्याला
प्रेम रस का।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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