श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “रीगल से वोल्गा तक।)

?अभी अभी # 408 ⇒ रीगल से वोल्गा तक? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आज जिसे मेरे शहर का रीगल चौराहा कहा जाता है। वहां कभी वास्तव में एक जीता जागता रीगल थियेटर था। और उसके पास एक मिल्की वे टाकीज़ भी। और इन दोनों के बीच। रीगल थियेटर के परिसर में ही एक शाकाहारी वोल्गा रेस्टोरेंट था।

जो लोग काम से काम रखते हैं। वे व्यर्थ में नाम के अर्थ में अपना समय नष्ट नहीं करते। रीगल टेलर्स भी हो सकता है और रीगल इंडस्ट्रीज भी। कई बड़े शहरों में होता था कभी रीगल सिनेमा। इसमें कौन सी बड़ी बात है। वैसे रीगल का मतलब शाही होता है।।

हमारे घर में मैं बचपन से गर्म पानी की एक बॉटल देखता आ रहा हूं। जिसे ईगल फ्लास्क कहते थे।और उस पर एक पक्षी की तस्वीर होती थी।

मां जब अस्पताल जाती थी। तो उसमें बीमार सदस्य के लिए गर्म चाय ले जाती थी। और पिताजी के लिए उसमें रात में।पीने के लिए।  गर्म पानी भरा जाता था। बाद में पता चला ईगल तो बाज पक्षी को कहते हैं।

वोल्गा नया रेस्टोरेंट खुला था। इतना तो जानते थे कि गंगा की तरह वोल्गा भी कोई नदी है। जो भारत में नहीं।  रूस यानी रशिया में कहीं बहती है। लेकिन इसके लिए राहुल सांकृत्यायन की गंगा से वोल्गा पढ़ना मैं जरूरी नहीं मानता।।

वोल्गा रेस्टोरेंट में हमने पहली बार छोले भटूरे का स्वाद चखा। हम मालवी और इंदौरी कभी चाय। पोहे। जलेबी और दाल बाफले से आगे ही नहीं बढ़े। रेस्टोरेंट के मालिक भी एक ठेठ पंजाबी सरदार थे। गर्मागर्म छोले और फूले फूले भटूरे और साथ में मिक्स अचार। सन् १९८० में कितने का था। आज याददाश्त भले ही काम नहीं कर रही हो। लेकिन एक आम आदमी के बजट में था। फिल्म की फिल्म देखो और छोले भटूरे भी खाओ।

यादों का झरोखा हमें कहां कहां ले जाता है। जयपुर में एक लक्ष्मीनारायण मिष्ठान्न नामक प्रतिष्ठान है। जिसे एलएमबी (LMB) भी कहा जाता था। उसी तर्ज पर इंदौर में भी एक जैन मिठाई भंडार था। जिसे आजकल JMB जेएमबी भी कहा जाने लगा है।

सराफे में इनकी पहली दुकान थी और मूंग के हलवे का पहला स्वाद इंदौर वासियों ने यहीं चखा था।।

आज इनकी इंदौर में कई शाखाएं हैं। लेकिन स्मृति में भी आज इनकी वही शाखा है। जो कभी रीगल थीएटर से कुछ कदम आगे। आज जहां स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एम जी रोड ब्रांच है। वहीं कभी JMB ने भी अपनी ओपन एयर शाखा भी खोली थी। जहां खुले में संगीत की मधुर धुनों में आप मुंबई की पांव भाजी का स्वाद ले सकते थे। जी हां इंदौर में पाव भाजी भी पहली बार JMB ही लाए थे। शायद यह बात उनकी आज की पीढ़ी को भी पता न हो।

आज शहर में छोटे भटूरे। पाव भाजी और मूंग का हलवा कहां नहीं मिलता। लेकिन रीगल चौराहे पर ना तो आज रीगल और मिल्की वे टाकीज मौजूद है। और ना ही वॉल्गा रेस्टोरेंट। लेकिन समय ने JMB को आज इतना बलवान बना दिया है।  कि इंदौर में उनकी कई शाखाएं भी हैं और अच्छी गुडविल भी। जो चला गया। उसे भूलने में ही समझदारी है। अलविदा रीगल। अलविदा वोल्गा।।

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments