श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “कुछ मीठा हो जाए”।)
हमारे भारतीयों के जीवन में मिठास का कारण हमारा मीठा स्वभाव, मीठे बोल, मीठे मीठे रस्म रिवाज हैं। गरीब से गरीब के घर में प्याज रोटी के साथ, एक गुड़ की डली तो आपको नसीब होगी ही। कलेक्टर के आवास में चपरासी रोज प्रवेश करता है, लेकिन कलेक्टर महोदय तो चपरासी के घर यदा कदा ही रुख करते होंगे और वह भी किसी विशेष प्रयोजन के अवसर पर। कितना खुश होता होगा, उनकी आवभगत करके, उनके साथ तस्वीर खिंचा के। उसे लगता है उसका जीवन धन्य हो गया।
अधिकतर कलेक्टर तो यह जिम्मेदारी भी अपने मातहत पर डाल देते हैं। इन छोटे लोगों को इतना मुंह लगाना ठीक नहीं। कल से ही मुंह लगने लगेगा।।
मीठे पर तो एक चींटी का भी अधिकार है। हमारे जीवन के सुख दुख मीठे नमकीन में ही गुजर जाते हैं। इस स्वाभाविक मिठास को भी बड़े अभियात्य तरीके से हमसे दूर किया जा रहा है। छोरा गंगा किनारे वाला, अपनी संस्कृति भूल भारतीय सांस्कृतिक उत्सवों पर कैडबरी चॉकलेट का विज्ञापन सालों से करते आ रहे हैं, कुछ मीठा हो जाए। थोड़े अपने दांत खराब कर लिए जाएं, बड़े बूढ़ों को लालच दिलाकर उन्हें शुगर का पेशेंट बनाया जाए।
परीक्षा का पर्चा देते वक्त, घर से निकलने के पहले मां के हाथ से एक चम्मच मीठा दही, कितना बड़ा शगुन था। मन में लड्डू फूट रहे हैं, शादी तय हो गई है, किससे कहें, किससे छुपाएं, चाची सब समझ जाती, कहती, लल्ला, आपके मुंह में घी शक्कर, ये बात कोई छुपने वाली है, रिश्ता तो हमने ही कराया है, घोड़ी भी हमीं चढ़ाएंगे।।
तब हमने कहां कॉफी, आइस्क्रीम और केक, पेस्ट्री का नाम सुना था। बस संतरे के शेप वाली गोली, जे. बी.मंघाराम के गोली बिस्किट और एकमात्र रावलगांव। आजकल तो बिस्किट को भी कुकीज कहने का फैशन है। हम दही छाछ पीने वाले क्या जाने कोक, पेप्सी और हेल्थ ड्रिंक का स्वाद।।
हमने कभी मीठे को स्वीट्स माना ही नहीं। हमारे लिए वह हमेशा लड्डू, पेड़ा, जलेबी, इमरती और रबड़ी ही रही। तब किसने सुन रखी थी, शुगर की बीमारी, ब्लड प्रेशर और कोलोस्ट्रोल का नाम। इधर खाया, उधर पचाया।।
हमने अंग्रेजों के दिन नहीं देखे, लेकिन इनके तौर तरीके सब सीख रखे हैं।हम उनकी तरह सुबह कलेवे की जगह ब्रेकफास्ट करने लग गए, लेकिन पोहे जलेबी और आलू बड़े का, और वह भी कड़क मीठी चाय के साथ। जमीन पर बैठकर खाना और पाखाना
दोनों हम भूल चले। 2BHK का फायदा। इस कुर्सी से उठकर बस उस कमोड कर ही तो बैठना है। इसे लैट्रिन, बाथ, किचन कहते हैं। कोई मेहमान आए हॉल में आकर हालचाल पूछने लगे। कुछ मीठा तो लेना ही पड़ेगा।।
बच्चे को कैडबरी पकड़ाई, खुश हो गया।
एक कैडबरी आपको कितनी परेशानियों से बरी करती है। कौन रवे, आटे, गाजर और बादाम का हलवा बनाए, लोग देखते ही मुंह सिकोड़ लेते हैं, एक चम्मच खाकर, मुंह बनाकर रख देते हैं, अच्छा है, क्या करू परहेज है।।
जो बिग बी से प्यार करे, वह कैडबरी से कैसे करे इंकार। बहन की राखी पर भी कैडबरी और कन्या की शादी की विदाई पर भी कैडबरी। लडकियां पन्नी से चॉकलेट निकाल चाटती जा रही है अपने लिपस्टिकी अधरों के बीच, और एक ऐसे वीभत्स रस का प्रदर्शन कर रही है, जो किसी अश्लील प्रदर्शन से कम नहीं।।
रात्रि का भोजन भी तब तक पूरा नहीं हो जाता, जब तक कोई मीठी डिश ना परोसी जाए। बड़ी बड़ी होटलों में तो स्टार्टर, तीन चार तरह के सूप और एक दर्जन सलाद और पापड़ तो अपीटाइजर में लग जाते हैं। पता नहीं, इन्हें भूख कब लगती है।पास्ता, मंचूरियन, मोमोजऔर पिज्जा की तो यहां भी खैर नहीं। बेचारे दाल चावल भी निराश हो जाते हैं, मेरा नंबर कब आएगा।
लेकिन जबान का पक्का आता है, एक चम्मच चावल और दाल ग्रहण कर उन्हें धन्य कर देता है।
जब आप जन गण मन की अवस्था में होते हैं, तो मैन शैफ आपसे अदब से पूछता है, सर कुछ डेजर्ट में लाऊं ? और आप बगले झांकने लगते हैं। सभी आइसक्रीम की वैरायटी, फ्रूट कस्टर्ड, खस शरबत, चीकू शेक और बनाना शेक। बहुमत जानता है, डेजर्ट क्या होता है, और आज का मुर्गा कौन है। बड़ी मुश्किल से आज पकड़ में आया है और फिर आइसक्रीम और चॉकलेट की ऐसी जुगलबंदी चलती है कि ठंड में नौबत तो हॉट आइसक्रीम तक आ जाती है। लगता है कोई आइसक्रीम में कार का जला हुआ ऑयल डाल रहा है। बंदर क्या जाने हॉट आइसक्रीम का स्वाद, जानकार लोग हमें क्षमा करें। फिर कभी मत कहना, कुछ मीठा हो जाए।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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