श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “स्टोव्ह …“।)
अभी अभी # 437 ⇒ स्वर्ग और नरक… श्री प्रदीप शर्मा
जो चीज बिना मरे नहीं अनुभव की जा सकती, उसकी कल्पना हम जीते जी ही कर लेते हैं। मरना तो आपको एक दिन है ही, अगर आपने अच्छे कर्म किए और पुण्यों को संचित किया तो आपका स्वर्ग में स्थान शर्तिया पक्का, अथवा अगर केवल झूठ बोलकर बुरे काम ही करते रहे, तो चित्रगुप्त आपको नर्क में भेजने में तनिक भी संकोच नहीं करेंगे। तीसरा कोई विकल्प उपलब्ध है ही नहीं।
इतना ही नहीं, मनुष्य जन्म लेकर ज्यादा इतराने और खुश होकर यह कहने की जरूरत भी नहीं कि, बड़े भाग मानुस तन पायो, क्योंकि आपके जन्म के साथ पिछले जन्म की पाप पुण्य की गठरी भी तो आपके सर पर है। शायद इसीलिए ऐसा कहा जाता होगा ;
ले लो, ले लो,
दुआएं मां बाप की।
सर से उतरेगी गठरी
पाप की।।
जब किसी सच्चे, मेहनती और ईमानदार इंसान के सर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है, तो सज्जन पुरुष तो यही कहते हैं, ईश्वर की लीला अपरम्पार है, जरूर पिछले जन्म के पापों का फल भोग रहा होगा।।
स्वर्ग नरक और पाप पुण्य की इस मान्यता से परे जीवन का एक सत्य यह भी है ;
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।
केवल मेहनत, परिश्रम और पुरुषार्थ से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं, भाग्य भरोसे बैठे रहने से कभी किसी को कुछ हासिल नहीं होता।
जब पाप और पुण्य की परिभाषा ही बदल जाती है, तो स्वर्ग और नरक दोनों ही पृथ्वी पर उतर आते हैं।
सच और झूठ का अंतर मिट जाता है, पाप की दो नंबर की कमाई को, एक नंबर की बनाकर, पुण्य भी कमाया जा सकता है।।
इश्वर को मानने वाले और भाग्यवादी भले ही खुश होते रहें, ईश्वर सब देख रहा है, उसकी लाठी में आवाज नहीं होती। जब कि सच तो यही है कि उसके यहां भी जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला सिद्धांत ही लागू है।
आप स्वर्ग क्यों जाते हैं, क्या आपको इस धरती पर जीता जागता स्वर्ग नजर नहीं आता। अतुल राधिका की प्रीवेडिंग और बाद में शादी देखकर भी क्या आपको यह नहीं लगा, मानो पूरा स्वर्ग ही इस धरती पर उतर आया हो।
क्या आपने वहां पूरी दुनिया को नतमस्तक नहीं देखा। क्या नेता और क्या राजनेता, वहां अप्सराएं भी थीं और बॉलीवुड के सभी देवता भी। पूरा संत समाज वहां आशीर्वाद समारोह में अपनी आभा बिखेर रहा था, जिनमें सभी योगगुरु, महामंडलेश्वर ऑर स्वयं शंकराचार्य भी शामिल थे।
आज की यह दुनिया किसी स्वर्ग से कम। फिर भी जिन्हें मरने के बाद भी स्वर्ग की चाह है वे जीवन में अंबानी की राह पर ही चलें और नरक जाने से बचें। हम क्यों स्वर्ग की ओर चलें, क्यों न स्वर्ग हमारे कदमों तले हो।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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