श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चूने/टपकने की समस्या…“।)
अभी अभी # 439 ⇒ चूने/टपकने की समस्या… श्री प्रदीप शर्मा
Leakage problem.
बरसात में चूने की, टपकने की, अथवा लीकेज की समस्या आम है। ऊपर वाला किसी को छत देता है तो किसी को छप्पर। गांव में तो पहले कवेलू के ही मकान होते थे। कल का खपरैल ही आपका आज का टाइल्स है। गरीबों के घर तो आज भी टीन टापरे के ही होते हैं। हमारे देश में एक आबादी झुग्गी झोपड़ी की भी है।
कभी कच्ची छत लोहे की नालीदार चद्दरों से बनी होती थी, जिनकी दरारों में से बरसात में अक्सर पानी टपकता था। बाहर बरसात और अंदर घर बैठे अभिषेक। जगह जगह लोटा, बाल्टी, परात टपकने की जगह लगाया जाता था। जिन घरों में कवेलू लगे होते थे, उनकी भी बरसात में देखरेख जरूरी होती थी।।
आज गांव और शहर, सभी जगह ईंट सीमेंट और लोहे के पक्के मकान बन रहे हैं, बाकायदा छत की भराई होती है, बड़े बड़े पिलर्स पर बहुमंजिला इमारतें, मॉल्स और ट्रेड सेंटर आकार ले रहे हैं। डॉक्टर्स और इंजीनियर्स की फौज खड़ी है आज इस देश में। फिर भी जहां देखो वहां चूना ही चूना और लीकेज ही लीकेज।
बिना ईंट, चूना सीमेंट के भी कभी कोई पुल अथवा इमारत बनी है। लेकिन जब ठेकेदार और इंजीनियर की नीयत ही चूना लगाने की हो, तो पुल तो ढहेगा ही, इमारत की छत भी टपकेगी ही। उधर शिक्षा के ठेकेदार चूना लगा रहे हैं तो इधर संसद से सड़क तक पानी ही पानी भरा हुआ है।।
लीकेज का मुख्य कारण है, चूना लगाना। पहले चूना सिर्फ पान में लगाया जाता था। आम घरों में पुताई भी चूने से ही होती थी। एशियन पेंट्स सिर्फ नवाबों के बंगलों में लगाया जाता था। लेकिन हाय रे नवाबों के नसीब, नवाब पटौदी हमें एशियन पेंट्स का विज्ञापन करते नजर आए और आज उनकी औलादें भी अभिनय के नाम पर, आज सिर्फ चूना ही लगा रही हैं।
आज भी छतों के चूने, और टपकने के अलावा भी समाज के हर क्षेत्र में हमें लीकेज नजर आ रहा है।
नैतिकता और सामाजिक मूल्यों में जब रिसाव शुरू हो जाता है, तो लोकतंत्र अंदर से खोखला हो जाता है। चूने अथवा रिसाव का इलाज चूना लगाना नहीं होता। आज जिसे देखो वही एक दूसरे को चूना लगा रहा है। छल, कपट, बेईमानी और स्वार्थ का चूना सबसे बड़ा देशद्रोह है। राष्ट्रीयता की बात करना और राष्ट्रीय हितों की परवाह करने में जमीन आसमान का अंतर है। कुंए में भांग कहावत पुरानी हो चली है, आज हमारा राष्ट्रीय चरित्र ही सबको चूना लगाना है। बचा सकते हैं तो बचा लीजिए लोकतंत्र को इस चूने से। बहुत जल्द यह इंसानियत को गला देता है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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