श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “अपने अपने ग्रह।)

?अभी अभी # 455 ⇒ अपने अपने ग्रह? श्री प्रदीप शर्मा  ?

यूं तो हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह ही है, लेकिन फिर भी इंसान कई ग्रहों के चक्कर में पड़ा रहता है। बिना ग्रहों की शांति के उसे गृह शांति तक नसीब नहीं होती। पृथ्वी पर तो सिर्फ इंसान बसते हैं, लेकिन ग्रहों में देवताओं का वास होता है। अगर आप राहू, केतु और शनि को संभाल लो, तो समझो, आपके सभी ग्रह बलवान हैं।

जो आस्तिक है, वह भगवान को भी मानेगा और ग्रहों को भी। सुबह सूर्य को अर्घ्य भी अर्पित करेगा और पूर्णिमा पर व्रत उपवास भी करेगा। जो व्यक्ति इन्हें ढोंग ढकोसला और पाखंड मानता है, उसके ग्रह अक्सर खराब ही रहते हैं। ऐसे लोग साढ़े साती कहलाते हैं।।

अगर हम इन नवग्रहों से ऊपर उठकर कुछ सोचने की कोशिश करें तो पता चलता है, हमारे जीवन में कुछ और ग्रह भी हैं, जिनके प्रभाव में हम अक्सर रहते हैं। इनमें सबसे बड़ा ग्रह है, आग्रह। क्योंकि हम खुद इसे न्यौता देते हैं, इसीलिए शायद इसे आग्रह कहा जाता है।

होते हैं बहुत से लोग, जो आग्रह के बहुत कच्चे होते हैं, उनसे बहुत सोच समझकर व्यवहार करना पड़ता है। अगर गलती से आपने उनसे चाय का पूछ लिया, तो वे तपाक से कह उठेंगे, जी अवश्य, चाय तो हमारी कमजोरी है, लेकिन हम खाली पेट चाय नहीं पीते, गैस करती है। आप भी समझ जाते हैं, केवल गैस पर चाय चढ़ाने से काम नहीं चलेगा, और अगर गलती से नाश्ता स्वादिष्ट हुआ, तो समझ लीजिए आपने मुसीबत को दावत दे दी। वे इतने अनौपचारिक हो जाएंगे कि अगली बार बिना आग्रह के ही आ धमकेंगे। भाभी जी की बनाई चाय तो अमृत है, और उनके हाथ के स्वादिष्ट पकौड़ों का जवाब नहीं।।

हम नहीं जानते, आग्रह के दो भाई और भी हैं, पूर्वाग्रह और दुराग्रह। हमें तो इनमें से एक अगर फरसा वाले परशुराम नजर आते हैं तो दूसरे महर्षि दुर्वासा। किसी व्यक्ति अथवा मसले पर अपनी पूर्व धारणा अथवा एकतरफा सोच पूर्वाग्रह कहलाता है। एक शब्द है, मान्यता, जिसके आगे कोई आग्रह, दलील अथवा तर्क काम नहीं करता। पूर्वाग्रह में कभी नीर क्षीर विवेक काम नहीं करता। अक्ल के सभी दरवाजे जब बंद हो जाते हैं, तब पूर्वाग्रह का जन्म होता है।

दुराग्रह पूर्वाग्रह की एडवांस स्टेज है। अपने विचार किसी पर जबरदस्ती थौंपना दुराग्रह ही तो है। कभी कभी आग्रह की अति भी दुराग्रह की शक्ल अख्तियार कर लेती है। अगर हमारे साथ बैठकर शराब नहीं पी, तो आज से दोस्ती खत्म। अपनी गलत बात मनवाने के लिए किसी को कसम खाने के लिए बाध्य करना भी क्या दुराग्रह नहीं है।।

सभी आग्रहों का एक बाप भी है, जिसे सत्याग्रह कहते हैं। हमने नमक सत्याग्रह भी देखा है और अन्ना हजारे का आमरण अनशन भी। कम नमक का आग्रह तो हम भी पत्नी से करते हैं, लेकिन सत्याग्रह आज तक नहीं कर पाए। हमें अपने सभी ग्रह खराब कर, घर बैठे, गृह शांति भंग नहीं करनी।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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