श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हाथ में हाथ।)

?अभी अभी # 479 ⇒ हाथ में हाथ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

Hand in hand

ईश्वर ने हमें दो हाथ शायद इसीलिए प्रदान किए हैं कि देवताओं को भी दुर्लभ यह मानव देह, इस तुच्छ जीव को अहैतुकी कृपा स्वरूप प्राप्त होने पर, वह दोनों हाथ जोड़कर उस सर्वशक्तिमान की वंदना कर आभार व्यक्त कर सके। कर की महिमा कौन नहीं जानता ;

कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमध्ये सरस्वती।

करमूले तु गोविन्द,

प्रभाते करदर्शनम्।

फिल्म मासूम (१९६०) में साहिर कह गए हैं ;

ये हाथ ही अपनी दौलत है,

ये हाथ ही अपनी ताकत है

कुछ और तो पूंजी पास नहीं,

ये हाथ ही अपनी किस्मत है।।

इससे पहले फिल्म नया दौर (१९५७) में वे हमें हाथ बढ़ाने का आव्हान भी इस अंदाज में कर गए हैं ;

साथी हाथ बढ़ाना,

एक अकेला थक जाएगा।

मिल कर बोझ उठाना

साथी हाथ बढ़ाना साथी रे….

ये दोनों हाथ कभी मिलते हैं, तो कभी जुड़ते हैं। हाथ से हाथ मिलने पर अगर हस्त मिलाप, यानी शेक हैंड होता है तो दोनों हाथ मिलाकर नमस्कार अर्थात् नमस्ते किया जाता है।

इसी हाथ में उंगली होती है, होगा डूबते को तिनके का सहारा, एक नन्हे बच्चे को तो अपनी मां अथवा पिताजी की उंगली का ही सहारा होता है। उसी उंगली के सहारे वह अपने पांव पर खड़े होकर चलना सीखता है। पांच उंगलियों को मिलाकर मुट्ठी बंधती है। नन्हे मुन्ने मुहे बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है, मुट्ठी में है तकदीर हमारी। सभी जानते हैं बंधी मुखी लाख की होती है और खुलने के बाद वह खाक की हो जाती है।।

हाथ साथ का प्रतीक है। जब दो दोस्त साथ-साथ चलते हैं तो उनके हाथों में एक दूसरे का हाथ होता है। किसी का हाथ पकड़ना उसका साथ देना भी है और उसका साथ पाना भी है। केवल हाथ के स्पर्श में प्रेम झलकता है ममता नजर आती है बड़ों का सिर पर हाथ आशीर्वाद ही तो होता है।

कहीं कलाई पर बहन द्वारा भाई को राखी बांधी जाती है, तो कहीं विवाह के गठबंधन में वर वधू का हाथ थामता है, अपने हाथों से उसकी मांग भरता है, तभी तो यह पाणिग्रहण संस्कार कहलाता है।।

अगर आप मुसीबत में किसी का हाथ थामते हैं तो इसका मतलब यही हुआ कि आप उसे सहारा देते हैं उसकी मदद करते हैं। सहज रूप से भी किसी का हाथ थामा जा सकता है। केवल किसी के हाथ पर हाथ रखकर भी उसे भरोसा दिया जा सकता है, सांत्वना दी जा सकती है, दिलासा दिया जा सकता है।

परेशानी अथवा उलझन की स्थिति में जब किसी आत्मीय अथवा शुभचिंतक का हाथ पर हल्का सा स्पर्श भी संजीवनी का काम करता है। सिर पर प्यार भरा, दुलार भरा हाथ तो केवल बच्चों को ही नसीब होता है, काश कोई हमारे सर पर भी स्नेह और आशीर्वाद का हाथ रख दे, बस वह ईश्वरीय अनुभूति से रत्ती भर भी कम नहीं।

आइए अंत में कुछ काम अपनी बांहों से भी ले लिया जाए ;

अपनी बांहों से

कोई काम तो लो।

गिर ना जाऊं मैं

हुजूर थाम तो लो।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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