श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मक्खी, मच्छर, खटमल…“।)
अभी अभी # 492 ⇒ मक्खी, मच्छर, खटमल… श्री प्रदीप शर्मा
हमारे युग ने भले ही डायनासोर की प्रजाति को ना देखा हो, लेकिन जुरासिक पार्क तो देखा है, मक्खी मच्छर से तो हमारा रोज पाला पड़ता है लेकिन खटमल की तो अब केवल याद ही शेष रह गई हैं।
आज भी मक्खी को उड़ाया जाता है और मच्छर को मारा जाता है, क्योंकि मक्खी गंदगी फैलाती है और मच्छर मलेरिया चिकनगुनिया और डेंगू जैसी जानलेवा बीमारियां। जो प्रबुद्ध नागरिक बढ़ती जनसंख्या और स्वास्थ्य के प्रति सजग होते हैं, वे छोटे परिवार के साथ ही पेस्ट कंट्रोल द्वारा अपने परिवार की बीमारियों से रक्षा करते हैं।
मक्खी मच्छरों को गंदगी बहुत पसंद होती है। जहां तहां रुके हुए पानी और गंदे नालों में इनकी आबादी दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती रहती है। मक्खी तो सुना है, जहां बैठती है वहीं अंडे देना शुरू कर देती है। जीव: जीवस्य भोजनम् के सिद्धांत के अनुसार ये कीट पतंग भी किसी का भोजन हैं, इसीलिए ये जीव समुद्र की मछली की तरह थोक में पैदा होते हैं। ।
आज की पीढ़ी ने शायद खटमल का सिर्फ नाम ही सुना होगा देखा नहीं होगा। ये जीव अपने आप में चलते-फिरते ब्लड बैंक होते थे, क्योंकि हमारा खून ही इनका भोजन होता था। जो लोग इन खटमलों के दौर से गुजरे हैं वे जानते हैं, यह गीत उनके लिए ही लिखा गया था ;
करवटें बदलते रहे
सारी रात हम
आपकी कसम
आपकी कसम
घर की कुर्सियों में, खाट में, अलमारी में, दीवारों के गड्ढे में, कहां नहीं होते थे ये खटमल। रात होते ही ये अपने घरों से निकल पड़ते थे इंसान का खून पीने।
घासलेट यानी केरोसिन इनका दुश्मन था। अब आप बिस्तर में तो घासलेट नहीं छिड़क सकते ना। इसलिए रात रात भर जागकर, एक पानी की कटोरी में इन्हें गिरफ्तार किया जाता था, तब जाकर इंसान रात में चैन की नींद सो पाता था।
सुना है जिन देशों में मच्छर नहीं है वहां मलेरिया भी नहीं है। काश खटमल की तरह यह मच्छर की प्रजाति भी हमारा पीछा छोड़ दे तो हम कितनी जान लेवा बीमारियों से बच सकते हैं। कहते हैं, Prevention is better than cure, यानी रोकथाम, इलाज से बेहतर है। बढ़ती जनसंख्या की तरह ही, गंदगी भी अभिशाप है। ।
सफाई और बदबू का आपस में क्या मेल ? ऐसा क्यों होता है कि हमें आसपास सफाई तो नजर आ जाती है लेकिन फिर भी ना जाने कहां से, नाक में बदबू भी प्रवेश कर ही जाती है। तामसी और सड़ा हुआ भोजन बहुत जल्दी बदबू फैलाता है।
इंपोर्टेड परफ्यूम और डिओडरेंट का प्रचलन बाजार में यूं ही नहीं है।
मच्छरों से लड़ने के लिए हमारे पास बहुत हथियार हैं, ऑल आउट, ऑडोमास और काला हिट। बाजार में खुली मिठाइयों पर मक्खियों का राज होता है। कटे फल और देर तक रखा हुआ सलाद भी इनकी नजर से बच नहीं सकता। मक्ख महारानी गंदे नाले से निकलकर आती है, और भोजन पदार्थ पर बैठकर अंडे देकर चली जाती है। हमारे पास कहां माइक्रोस्कोप है। सुरक्षा और सावधानी ही इसका एकमात्र विकल्प है।
याद आती है, वह धुएं की मशीन, जो डीडीटी छिड़ककर कभी मोहल्ले से मच्छरों का सफाया करती थी। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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